मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर को निधन हो गया। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में वह दो बार यानी 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहे। इससे पहले प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव की सरकार में 1991 से 1996 तक वित्त मंत्री रहे और देश में आर्थिक सुधारों को लागू करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। 24 जून 1991 को तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिसके बाद आखिरकार ग्लोबल इकोनॉमी के लिए भारत के दरवाजे खुल गए। 1991 के बजट में सिंह ने ऐसे वक्त में आर्थिक सुधारों को लागू किया, देश में बैलेंस ऑफ पेमेंट संकट से गुजर रहा था।
‘सिर्फ 15 दिनों के लिए बचा है फॉरेक्स रिजर्व’
सिंह ने संसद को याद दिलाया था कि देश के पास सिर्फ 15 दिनों का फॉरेक्स रिजर्व है। उन्होंने कहा, ‘फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व का मौजूदा लेवल 2,500 करोड़ रुपये के रेंज में था और इससे सिर्फ 15 दिनों तक का ही फाइनेंस इंपोर्ट हो सकता है।’ सिंह ने उस वक्त कहा था कि यह वक्त समय गंवाने का नहीं है। उन्होंने भारत में प्रत्यक्ष विदेशी के लिए पॉलिसी का ऐलान करते हुए कहा था, ‘न तो सरकार और न ही इकोनॉमी साल दर साल अपने साधनों से इतर जाकर अपना वजूद कायम रख सकती है।’
सिंह ने लाइसेंस राज सिस्टम के खात्मे वाली पॉलिसी के ऐलान वाले अपने मशहूर भाषण में कहा था, ‘घरेलू बाजार में कंपनियों के बीच कॉम्पिटिशन को बढ़ाने के लिए यह जरूरी है, ताकि उत्पादकता बढ़ाने, क्षमता में सुधार और कॉस्ट कम करने के लिए पर्याप्त इंसेंटिव है।’ देश में आर्थिक सुधारों को लागू करके सिंह समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं। एक मशहूर अर्थशास्त्री के तौर पर सिंह की भूमिका रुपये की कमजोरी रोकने, इंपोर्ट टैरिफ को घटाने और सरकारी कंपनियों के निजीकरण में बेहद अहम रही है।
लाइसेंस राज का खात्मा
सिंह ने सदन को बताया कि अब समय आ गया है कि भारतीय इंडस्ट्री को चरणबद्ध तरीके से विदेशी इकाइयों से कॉम्पिटिशन के लिए तैयार किया जाए। उन्होंने कहा था, ‘इस दिशा में पहले कदम के तहत सरकार ने इंपोर्ट-एक्सपोर्ट पॉलिसी में बदलाव किया है, जिसका मकसद इंपोर्ट लाइसेंसिंग, एक्सपोर्ट प्रमोशन और इंपोर्ट को कम करना है।’
सिंह ने अपने भाषण में फ्रांसीसी उपन्यासकार विक्टर ह्यूगो को उद्धृत करते हुए कहा था, ‘धरती पर उस आइडिया को कोई रोक नहीं सकता, जिसका समय आ गया है।’ सिंह ने 1 घंटा 35 मिनट के अपने भाषण में कवि गिरिजा कुमार माथुर की मशहूर पंक्तियों को दोहराते हुए कहा था, ‘ हम होंगे कामयाब’। मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘ मैं इस सदन से कहना चाहूंगा कि दुनिया के एक बड़ी आर्थिक ताकत के तौर पर भारत का उभार एक ऐसा ही आइडिया है। पूरी दुनिया को यह बात सुन लेनी चाहिए। भारत अब जाग चुका है। हम कामयाब होंगे।’
बजट का बचाव
सिंह द्वारा 1991 में पेश किए गए बजट को लेकर उन्हें काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी। यहां तक कि उनकी पार्टी के ज्यादातर नेता भी बजट से नाराज थे। कांग्रेस नेता जयराम रमेश की किताब ‘ टू द ब्रिंक एंड बैंक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में आर्थिक सुधारों से जुड़े बदलावों को काफी विस्तार से बताया गया था। किताब के मुताबिक, ‘ फाइनेंस मिनिस्टर ने अपने बजट को मानवीय चेहरे वाला बजट बताया था।’