M-cap: इस महीने दिसंबर में घरेलू स्टॉक मार्केट में उठा-पटक के बीच भारतीय स्टॉक मार्केट में लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप 9 फीसदी बढ़ गया। यह दुनिया के दस सबसे बड़े इक्विटी मार्केट में सबसे अधिक उछाल रहा। सिर्फ भारतीय मार्केट के ही संदर्भ में बात करें तो तीन साल में यह सबसे तेज उछाल है और लगातार चार महीनों की गिरावट के बाद इस महीने दिसंबर में भारतीय कंपनियों के मार्केट कैप में इजाफा हुआ है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक इस तेज उछाल के साथ अब भारतीय कंपनियों का मार्केट कैप 4.93 ट्रिलियन डॉलर यानी कि 420.32 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। सेंसेक्स और निफ्टी में डेढ़ फीसदी से अधिक की गिरावट आई जबकि बीएसई मिडकैप इंडेक्स में आधे फीसदी की तेजी और बीएसई स्मॉलकैप इंडेक्स में 0.3 फीसदी की मामूली गिरावट आई।
विदेशी निवेशकों के दम पर बढ़ा मार्केट कैप
मुख्य रूप से विदेशी निवेशकों की वापसी के चलते ही भारतीय मार्केट में लिस्टेड कंपनियों के मार्केट कैप में इस महीने 9.4 फीसदी की तेजी आई जो मई 2021 के बाद सबसे अधिक है। विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने इस महीने अब तक 6744.14 करोड़ रुपये की ही नेट बिक्री की है जबकि इससे पहले अक्टूबर महीने में उन्होंने 1,14,445.89 करोड़ रुपये और नवंबर में 45,974.12 करोड़ रुपये की नेट बिक्री की थी।
ऐसा रहा दुनिया के दस बड़े देशों में मार्केट का हाल
भारत में लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप मासिक आधार पर इस महीने 9.40 फीसदी उछलकर 4.93 ट्रिलियन यानी 4.93 लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच गया और बढ़ोतरी के मामले में यह टॉप पर रहा। वहीं दुनिया के सबसे बड़े इक्विटी मार्केट अमेरिका की बात करें तो इस महीने इसका मार्केट कैप लगातार सात महीने की तेजी के बाद 0.42 फीसदी गिरकर 63.37 ट्रिलियन डॉलर पर आ गया। दुनिया का दूसरे सबसे बड़े मार्केट चीन की बात करें तो इसका मार्केट कैप दिसंबर में लगातार पांचवे महीने फिसला और 0.55 फीसदी गिरकर 10.17 ट्रिलियन डॉलर पर आ गया। यहां 10 सबसे बड़े मार्केट के मार्केट कैप में इस महीने उतार-चढ़ाव को दिखाया जा रहा है।
वैश्विक स्तर पर रहा भारी उतार-चढ़ाव
भारतीय कंपनियों का मार्केट कैप ऐसे समय में बढ़ा है, जब वैश्विक स्तर पर काफी उतार-चढ़ाव रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद टैरिफ वार की आशंका, अमेरिकी फेड की आक्रामक मौद्रिक नीतियों ने दबाव डाला ही; साथ ही घरेलू स्तर पर भी कई चुनौतियां सामने आईं। घरेलू स्तर पर कंपनियों की कमजोर कमाई, सुस्त इकनॉमिक ग्रोथ, सख्त लिक्विडिटी, सरकारी खर्च में देरी और महंगाई के लगातार दबाव ने निवेशकों के सेंटिमेंट को झटका दिया है।
अब आगे की बात करें तो एनालिस्ट्स का मानना है कि भारत पर अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार का खास असर नहीं पड़ेगा। देश की लॉन्ग टर्म स्ट्रक्चरल ग्रोथ बनी रहेगी लेकिन राजकोषीय कंसालिडेशन और आरबीआई की सख्त नीतियों के चलते क्रेडिट ग्रोथ में सुस्ती पर वर्ष 2025 में जीडीपी ग्रोथ 6.3 फीसदी तक धीमी हो सकती है। एनालिस्ट्स ने दरों में कटौती के अनुमान को लेकर उम्मीद जताई कि वर्ष 2025 की पहली तिमाही में दरों में कटौती शुरू हो सकती है और वर्ष के मध्य तक यह 0.50 फीसदी तक कम हो सकता है। हालांकि एनालिस्ट्स का कहना है कि इस कटौती के बावजूद रिटेल लोन ग्रोथ कम बनी रह सकती है।
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