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SEBI के ऑप्शंस ट्रेडिंग के नियमों को सख्त बना देने से फायदे की जगह हो रहा नुकसान

मार्केट रेगुलेटर्स ने रिटेल इनवेस्टर्स को लॉस से बचाने के लिए फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (एफएंडओ) के लिए कई नियम बदले हैं। लेकिन, इनका ऑप्शंस ट्रेडिंग पर खराब असर पड़ा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीएसई और एनएसई पर ऑप्शंस ट्रेडिंग वॉल्यूम में बड़ी गिरावट आई है। एनएसई पर बैंक निफ्टी ऑप्शंस की डेली ट्रेडिंग वॉल्यूम गिरकर इस महीने 2 करोड़ कॉन्ट्रैक्ट्स से कम रह गई है। नए नियमों के लागू होने से पहले यह 20 करोड़ थी। बैंक निफ्टी के वीकली कॉन्ट्रैक्ट के डिसकंटिन्यू होने से मंथली कॉन्ट्रैक्ट में दिलचस्पी काफी कम हो गई है।

एनालिस्ट्स, ब्रोकर्स और सरकारी अफसरों को वॉल्यूम में कमी आने का अंदाजा था। लेकिन, ऐसा लगता है कि उन्हें वॉल्यूम में इतनी ज्यादा गिरावट की आशंका नहीं थी। ऑप्शंस मार्केट में कुल वॉल्यूम एक महीने में 40 फीसदी से ज्यादा गिर गई है। सेबी और फाइनेंस मिनिस्ट्री के इन प्रतिबंधों को लगाने से पहले ऑप्शंस ट्रेडिंग के लिहाज से इंडियन मार्केट दुनिया में पहले पायदान पर था। सेबी के रिसर्च में यह पाया गया कि पांच फीसदी से कम ऑप्शंस ट्रेडर्स को फायदा होता है। इसलिए सेबी ने नियमों को सख्त बनाने में जल्दबाजी दिखाई।

सेबी के नए नियमों से इंडेक्स डेरिवेटिव्स में काफी बदलाव आया है। कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ गया है। वीकली एक्सपायरी की फ्रीक्वेंसी कम हो गई है। ऑप्शन के एक्सपायरी डेज पर मार्जिन अब बढ़ गया है। अथॉरिटीज को यह लग सकता है कि रिटेल इनवेस्टर्स को लॉस से बचाने का उनका मकसद पूरा हो गया है। लेकिन, उन्हें यह समझना होगा कि इससे ‘डब्बा ट्रेडिंग मार्केट’ बढ़ा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, डब्बा ट्रेडिंग वॉल्यूम का डेली वॉल्यूम 100 लाख करोड़ रुपये हो गया है। यह कुल टर्नओवर का 20 फीसदी है।

 

सरकार का मकसद रिटेल इनवेस्टर्स के हितों की सुरक्षा था। लेकिन, रिटेल इनवेस्टर्स रेगुलेटेड एक्सचेजों की जगह अब अनरेगुलेटेड प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने लगे हैं। डब्बा ऑपरेटर्स अब पहले से ज्यादा स्मार्ट हो गए हैं। वे नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर ट्रेडर्स को अट्रैक्ट कर रहे हैं। सरकार की एजेंसियों ने कई डब्बा ऑपरेटर्स पर छापे मारे हैं। मनीकंट्रोल ने अपनी इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट में बताया था कि कम से कम दो ब्रोकर्स को इस गैरकानूनी गतिविधि में शामिल पाया गया है।

कई ट्रेडर्स ने क्रिप्टोकरेंसी जैसे नए एसेट्स में निवेश करना शुरू कर दिया है। कुछ ट्रेडर्स ऐसे देशों का रुख कर रहे हैं, जहां बिजनेस करने की कॉस्ट काफी कम है। इससे ऐसा लगता है कि सरकार के उपायों का फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है। ट्रेडिंग एक्टिविटी फॉर्मल सिस्टम से बाहर होने से सरकार को रेवेन्यू में भी लॉस हो रहा है। ब्रोकरेज अपने रेवेन्यू को घटने से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर उनका रेवेन्यू घटता है तो ब्रोकरेज इंडस्ट्री में बड़ी संख्या में नौकरियां जा सकती हैं। इस पूरी कवायद का फायदा सिर्फ डब्बा ऑपरेटर्स को होता दिख रहा है।

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