नवंबर में भारत का गोल्ड इंपोर्ट लेवल बढ़कर रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया। इस तरह ट्रेड डेफिसिट को बढ़ाने में यह अहम भूमिका निभा रहा है और पॉलिसीमेकर्स को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। कॉमर्स मिनिस्ट्री के मुताबिक, नवंबर के दौरान गोल्ड इंपोर्ट 173 टन के ऑल टाइम हाई लेवल पर पहुंच गया। मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल से नवंबर के दौरान गोल्ड इंपोर्ट में सालाना आधार पर 49 पर्सेंट की बढ़ोतरी देखने को मिली। 2024 में यह आंकड़ा 800 टन पार करने को है, जबकि पिछले दो साल में सालाना इंपोर्ट का यह आंकड़ा 700 टन के आसपास रहा है।
गोल्ड इंपोर्ट में बढ़ोतरी वजह से फिस्कल मोर्चे पर भी दबाव बढ़ा है और भारतीय रुपया कमजोर हुआ है। इससे इंपोर्ट महंगा होने का जोखिम बढ़ा है। गोल्ड इंपोर्ट में बढ़ोतरी की वजह ड्यूटी में कटौती भी है। ऐसे में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई है कि क्या सरकार को 2025 के बजट में गोल्ड पर इंपोर्ट ड्यूटी में बढ़ोतरी करनी चाहिए?
सरकार द्वारा गोल्ड इंपोर्ट को 15% से घटाकर 6% किए जाने के बाद गोल्ड इंपोर्ट में बढ़ोतरी हुई है, जबकि सोने की स्मगलिंग कम हुई है। इससे पहले भारत में सालाना 150-200 टन गोल्ड की स्मगलिंग की जाती थी। इसमें से बड़ा हिस्सा अब आधिकारिक चैनलों के जरिये भारत में पहुंच रहा है। हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि आगामी बजट में इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने से पहले सरकार दिसंबर के ट्रेड और इंपोर्ट डेटा का इंतजार करेगी।
नवंबर में गोल्ड इंपोर्ट में बढ़ोतरी की कुछ और वजहें रहीं:
फेस्टिव और वेडिंग सीजन की मांग: कैलेंडर ईयर 2024 की आखिरी तिमाही में गोल्ड की खरीदारी में बढ़ोतरी की वजह त्योहार और शादियां रहीं। इस साल अक्टूबर से जनवरी के मध्य तक तकरीबन 48 लाख शादियां हैं, जिससे भी मांग को बढ़ावा मिला।
इनवेस्टमेंट के तौर पर बढ़ा आकर्षण: इस साल गोल्ड ने 30 पर्सेंट का रिटर्न दिया है और इससे निवेशकों की दिलचस्पी सोने में बढ़ी है। दरअसल, ग्लोबल स्तर पर अनिश्चितताओं के बीच निवेशक अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करने में जुटे हैं।
बाजार में पारदर्शिता बढ़ने का फायदा: हॉलमार्क ज्वैलरी की शुरुआत और गोल्ड बिजनेस में कॉरपोरेट ज्वैलरी खिलाड़ियों की भागीदारी बढ़ने से उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ा है और खरीदारी को भी सहारा मिला है।