डॉलर के मुकाबले रुपये में इस साल अब तक 1.40 पर्सेंट की कमजोरी रही है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले हफ्ते में डॉलर की तुलना में रुपया 85 के स्तर पर पहुंच सकता है। रुपये को कमजोर करने में कई फैक्टर्स की भूमिका रही है, मसलन शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों का आउटफ्लो, मजबूत डॉलर इंडेक्स, कमजोर ग्रोथ डेटा आदि।
इसके अलावा, रिजर्व बैंक (RBI) के नए गवर्नर की नियुक्ति की वजह से रुपये में कमजोरी को बढ़ावा मिला। दरअसल, नए गवर्नर की नियुक्ति के कारण अगली मॉनिटरी पॉलिसी में केंद्रीय बैंक द्वारा अगली मॉनिटरी पॉलिसी में ब्याज दर में कटौती की संभावनाएं बढ़ गई हैं। हालांकि, रुपये में कमजोरी अभी भी अन्य विकासशील देशों की मुद्राओं के मुकाबले कम है। रिजर्व बैंक की दिसंबर मॉनिटरी पॉलिसी में कहा गया है कि भारत के मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक फंडामेंटल्स और एक्सटर्नल सेक्टर आउटलुक की वजह से रुपये में कमजोरी बाकी विकासशील देशों की मुद्राओं के मुकाबले कम है।
ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, जापान और साउथ कोरिया की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपये की मजबूती डॉलर के मुकाबले बनी हुई है। डॉलर के मुकाबले रुपये में इस साल 1.40 पर्सेंट की कमजोरी है, जबकि जापानी और दक्षिणी कोरियाई मुद्रा में क्रमशः 8.78 पर्सेंट और 8.53 पर्सेट की कमजोरी है। इसके अलावा, डॉलर के मुकाबले फिलीपींस की मुद्रा पेसो में 5.85 पर्सेंट की कमजोरी रही।
हालांकि, मलेशियाई मुद्रा और हॉन्गकॉन्ग डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये की परफॉर्मेंस कमजोर रही है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मलेशियाई मुद्रा और हॉन्गकॉन्ग डॉलर में क्रमशः 3.51 पर्सेंट और 0.43 पर्सेंट की मजबूती देखने को मिली है। रुपये की कमजोरी को रोकने के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा किए गए हस्तक्षेप का सकारात्मक असर भी दिखा है और इससे भारतीय मुद्रा के उतार-चढ़ाव को सीमित करने में मदद मिली है।