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रामदेव अग्रवाल को पिटे हुए ब्लूचिप की तलाश – search for the blue chip who beat ramdev aggarwal – बिज़नेस स्टैंडर्ड

शेयर बाजार के निवेशक होने के नाते संभावित मल्टीबैगर की पहचान की खातिर निरंतर तलाश जारी रहती है। बाज़ार हालांकि लगातार मौके देता है, लेकिन उन्हें सही समय पर पहचानना और पूरी तरह से प्रतिबद्ध होने का दृढ़ विश्वास रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। नतीजतन केवल चुनिंदा घरेलू निवेशकों ने ही अपने निवेश के जरिए अरबपति का दर्जा हासिल किया है।

रामदेव अग्रवाल की करीब 2.5 अरब डॉलर की कुल हैसियत मोटे तौर पर मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज की कामयाबी की बदौलत है (जिसका मूल्यांकन अब 7 अरब डॉलर है)। इसे लगभग चार दशक पहले एक छोटी प्रतिभूति फर्म के रूप में मित्र मोतीलाल ओसवाल के साथ मिलकर शुरू किया गया था। फिर भी उनकी व्यावसायिक सफलता की वजह शेयरों के चयन के शौक में छिपा है। यह ऐसा कौशल है जो उनके मूल में बरकरार है। उनके नजरिये का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सालाना संपत्ति सृजन अध्ययन है, जहां वह उन कंपनियों की पहचान करते हैं और जश्न मनाते हैं जो पांच साल की अवधि में अपने शेयरधारकों के लिए पर्याप्त वैल्यू सृजित करती हैं।

हम अग्रवाल से तब मिले जब वह ब्रूस बर्जर की पुस्तक ‘हाउ टू क्रिएट वेल्थ इनवेस्टिंग इन टर्नअराउंड स्टॉक्स’ पर आधारित अध्ययन के 29वें संस्करण को अंतिम रूप दे रहे थे। इसका विषय “ पिटे ब्लूचिप्स” में निवेश करना है। वह जल्दी से समझाते हैं : ब्लूचिप्स अग्रणी 250 कंपनियों के शेयर हैं, जिनका इक्विटी पर 10 साल का औसत रिटर्न (आरओई) 20 फीसदी से अधिक है। (कुछ शीर्ष संपत्ति सृजक आरओई फिल्टर को पूरा नहीं करते हैं लेकिन अपने बड़े आकार के कारण शामिल हैं)। उनके उच्चतम स्तर से 50 फीसदी की गिरावट उन्हें “पिटे हुए ब्लूचिप्स” बनाती है।

अग्रवाल इस बात पर जोर देते हैं कि निवेश विज्ञान से कहीं अधिक कला है। लेकिन पिटे हुए ब्लूचिप पर समय पर दांव लगाना लगातार फायदेमंद साबित हुआ है। 2018 के बाद से बाजार में हर साल औसतन 40 ऐसी कंपनियां सामने आई हैं। इन कंपनियों की अंतर्निहित ताकत अक्सर शानदार बदलाव की कहानी बयां करती है। अध्ययन में शामिल उल्लेखनीय उदाहरणों में कमिंस इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, ग्लेनमार्क फार्मा, श्रीराम फाइनैंस और एनपीटीसी शामिल हैं, जिनके शेयर की कीमतों में उनके उच्चतम स्तर से 50 फीसदी से अधिक की गिरावट देखी गई। फिर भी इनमें गिरे हुए स्तर पर निवेश करने से महत्वपूर्ण रिटर्न मिला।

रामदेव अग्रवाल ने बताया कि पिटे हुए ब्लूचिप्स को अक्सर आंतरिक और बाहरी कारणों से सजा का सामना करना पड़ता है। आंतरिक मुद्दों में पूंजी का गलत आवंटन, खराब प्रबंधन रणनीति या वित्तीय प्रदर्शन में गिरावट जैसे कारक शामिल हैं। दूसरी ओर, बाहरी कारकों में मंदी, प्रतिस्पर्धी या नियामक परिदृश्य में बदलाव हो सकते हैं। इन चुनौतियों के बावजूद अग्रवाल का तर्क है कि ब्लूचिप्स हमेशा दीर्घकालिक क्षमता होती है।

अग्रवाल के मुताबिक हाल के वर्षों में बाजार की उछाल ने गिरे हुए ब्लूचिप को तेजी से दुर्लभ बना दिया है। वह बताते हैं कि एक बड़ी पेंट कंपनी (जिसने डीप पॉकेट वाली कंपनियों के बढ़ते प्रतिस्पर्धी दबाव के बीच 30 फीसदी की गिरावट का सामना किया है) निगरानी सूची में शामिल हो गई है। अगर यह गिरावट 50 फीसदी तक बढ़ती है तो यह एक आकर्षक निवेश का मौका मुहैया करा सकती है। उनका सुझाव है शेयर में समय से पहले निवेश करना उतना लाभकारी नहीं हो सकता है।

घंटे भर के साक्षात्कार के दौरान 68 वर्षीय अग्रवाल ने बार-बार स्वर्गीय राकेश झुनझुनवाला का जिक्र किया और लगभग ईर्ष्या की भावना के साथ उनका गिरे हुए ब्लूचिप पहचानने वाले उस्ताद के रूप में जिक्र किया। वह बताते हैं कि टाइटन, एस्कॉर्ट्स और ल्यूपिन पर झुनझुनवाला का कामयाब दांव पस्त ब्लूचिप में निवेश की रणनीति का अहम उदाहरण है। इसी रणनीति ने 50,000 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित करने में मदद की।

अग्रवाल के मुताबिक जो बात झुनझुनवाला को अलग करती थी वह थी अपने पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा (10-15 फीसदी) ऐसे शेयरों में आवंटित करने की उनकी हिम्मत। अग्रवाल मुख्य रूप से सूचीबद्ध कंपनियों में अपने निवेश के लिए जाने जाते हैं, लेकिन उन्होंने स्टार्टअप इकोसिस्टम की खोज भी शुरू कर दी है और सक्रिय रूप से स्टार्टअप के साथ जुड़ रहे हैं। वह पहले से ही अग्रणी फूड डिलीवरी और ज़ेप्टो, स्विगी और ज़ोमैटो जैसी क्विक कॉमर्स फर्मों में निवेश कर चुके हैं। दोनों में निजी हैसियत के साथ-साथ एमओएफएसएल के माध्यम से।

अग्रवाल अगले पांच वर्षों में इन कंपनियों के 70-80 फीसदी की सालाना वृद्धि दर से बढ़ने का अनुमान लगा रहे हैं। उनकी निवेश थीसिस का मूल 600 अरब डॉलर के खाद्य और किराना खुदरा बाजार में होने वाले बड़े बदलाव पर आधारित था जो तेजी से पारंपरिक ऑफलाइन खरीदारी से क्विक कॉमर्स की ओर बढ़ रहा है। अग्रवाल का कहना है कि इस बदलाव की सटीक सीमा का अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन उपभोक्ता व्यवहार में 15 फीसदी बदलाव भी 100 अरब डॉलर का अवसर पैदा कर सकता है जिसे बड़े पैमाने पर वे क्विक कॉमर्स फर्में साझा करेंगी जिनमें उन्होंने निवेश किया है। अग्रवाल अनुमान लगा रहे हैं अगले 10 वर्षों में उनके निवेश पर 20 गुना रिटर्न मिलेगा।

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