टॉप ग्लोबल संस्थान मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) ने भारत में निवेश को लेकर बिल्कुल अलग तरह का रवैया अख्तियार किया है, जो बाकी के उलट भी है। ग्लोबल हायर एजुकेशन इंडेक्स में इस यूनिवर्सिटी की रैंकिंग दूसरी है और यह भारत में फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर (FPI) के तौर पर रजिस्टर्ड भी है। हालांकि, यूनिवर्सिटी ऐसी कंपनियों में निवेश रही है, जो साइज में छोटी हैं और जहां कुछ अन्य फॉरेन फंड्स ही निवेश कर रही हैं।
स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग के आंकड़ों के मुताबिक, MIT ने बाजार के मूवमेंट पर ध्यान दिए बिना अपना निवेश बनाए रखा है। अमेरिकी यूनिवर्सिटी का यह रवैया उन फॉरेन फंडों के बिल्कुल उलट है, जो मुख्य तौर पर निवेश के लिए टॉप 50 या 100 कंपनियों में निवेश करते हैं। मनीकंट्रोल द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, MIT की कम से कम 30 कंपनियों में हिस्सेदारी है और इसका इंडिया पोर्टफोलियो तकरीबन 8,100 करोड़ रुपये (तकरीबन 1 अरब डॉलर) है।
इन शेयरों का बड़ा हिस्सा 2017 से 2022 के दौरान खरीदा गया और होल्डिंग में मोटे तौर पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। मिसाल के तौर पर, बिल्डिंग मटीरियल्स कंपनी एवरेस्ट इंडस्ट्रीज में कंपनी की हिस्सेदारी 9.86 पर्सेंट है। एवरेस्ट के पास 1,400 करोड़ रुपये का मार्केट कैप है और कंपनी में FPI होल्डिंग 10.49 पर्सेंट है, जिसका मतलब है कि अन्य FPIs (MIT) को छोड़कर का हिस्सा महज 0.63 पर्सेंट है।
इसी तरह, नोएडा की कंपनी कैलकॉम विजन (Calcom Vision) में MIT की हिस्सेदारी 6.7 पर्सेंट थी, जो प्रोफेशन लाइटिंग सॉल्यूशंस मुहैया कराती है। कंपनी के पास सिर्फ 165 करोड़ रुपये का मार्केट कैप है और MIT को छोड़कर बाकी FPIs की हिस्सेदारी 0.73 पर्सेंट है। एंटनी वेस्ट हैंडलिंग सेल में MIT की 6.93 पर्सेंट हिस्सेदारी, जबकि बाकी FPIs का कुल हिस्सा 4.4 पर्सेंट है।
अमेरिका की सभी प्रमुख यूनिवर्सिटीज को अपने संरक्षकों से चंदा या अनुदान मिलता है। MIT इस रकम को स्कॉलरशिप देने, यूनिवर्सिटी के मेंटेनेंस और निवेश पर खर्च करता है। NSDL के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर (FPIs) के तौर पर 11 यूनिवर्सिटी रजिस्टर्ड हैं। इनमें कॉरनेल यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ केंब्रिज, ड्यूक यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ नॉट्रेडम शामिल हैं।