ऊंची महंगाई और ग्राहकों की सिकुड़ती क्रय शक्ति ने लगता है कि उपभोग से जुड़े शेयरों का निवाला छीन लिया है। लिहाजा, हाल के महीनों में कई शेयरों में गिरावट देखने को मिली है। विश्लेषकों का मानना है कि त्योहारी सीजन (28 अक्टूबर से 3 नवंबर के दौरान चरम) भी बहुत अच्छा नहीं रहा।
स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा ने कहा कि कई निवेशकों ने पिछले कुछ महीनों में डिस्क्रिशनरी और गैर- डिस्क्रिशनरी खर्चों में कमी की है। उन्होंने कहा कि सीमित संख्या में नौकरियां आई हैं और महंगाई ने भी बड़ा झटका दिया है। इस कारण संभावना है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के उपभोक्ताओं ने कम खर्च किया। इससे कंपनियों की बिक्री कम रही जिससे शेयरों के प्रदर्शन को झटका लगा। बाजार की हालिया गिरावट ने भी निवेशकों को कुल मिलाकर सुस्त चल रहे उपभोग के बीच इन शेयरों में निवेश के लिए हतोत्साहित किया।
नोमूरा के हालिया नोट से त्योहारी सीजन की मिली जुली तस्वीर मिलती है। ग्रामीण इलाकों में मांग को थोड़ा सहारा मिला लेकिन मझोले और छोटे शहरों, महानगरों के साथ-साथ औद्योगिक मांग कमजोर रही। नोमूरा के मुताबिक अक्टूबर के आंकड़ों से हालांकि दोपहिया की बिक्री में मजबूत वृद्धि देखने को मिली लेकिन यात्री वाहनों की बिक्री भारी छूट के बावजूद सुस्त रही। मझोले और भारी वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री की रफ्तार भी घटी। साक्ष्य बताते हैं कि त्योहारी सीजन के दौरान खुदरा बिक्री (ऑनलाइन और ऑफलाइन) बढ़ी लेकिन वृद्धि की रफ्तार सुस्त थी।
नोमूरा की मुख्य अर्थशास्त्री (भारत और जापान को छोड़कर एशिया) सोनल वर्मा ने औरोदीप नंदी के साथ लिखे हालिया नोट में कहा कि हमारा मोटा अनुमान बताता है कि 2024 के त्योहारी सीजन के दौरान बिक्री में सालाना आधार पर करीब 15 फीसदी की वृद्धि हुई जो साल 2023 की करीब 32 फीसदी और 2022 की 88 फीसदी के मुकाबले काफी कम है। ऑफलाइन स्टोरों के जरिये खुदरा बिक्री की रफ्तार धीमी रही लेकिन ऑनलाइन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के जरिये ज्यादा।
ऑनलाइन ई-कॉमर्स की बिक्री में इजाफा मुख्य रूप से मझोले और छोटे शहरों से हुआ। ऊंची कीमतों के कारण सोने की मांग मात्रा के लिहाज से कम रही और कमजोर मांग से तुरंत वाला हवाई किराया घटा। नोमूरा का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था साइक्लिकल वृद्धि में नरमी के दौर में प्रवेश कर गई है और गिरावट का बढ़ता जोखिम उसके 2024-25 के जीडीपी वृद्धि अनुमान 6.7 फीसदी और 2025-26 के लिए 6.8 फीसदी वृद्धि पर असर डालेगा। दोनों ही अनुमान पहले ही भारतीय रिजर्व बैंक के आकलन से कम हैं (वित्त वर्ष 25 के लिए 7.2 फीसदी और वित्त वर्ष 26 के लिए 7.1 फीसदी)।
एचएसबीसी की राय भी ऐसी ही है। उसका कहना है कि मौसम सामान्य होने, बिजली की मांग और खनन व यूटिलिटीज में वृद्धि नरम हुई है। ट्रेड और ट्रांसपोर्ट का पिछड़ना जारी है। हालांकि पर्यटन के उपक्षेत्र में मजबूती बनी हुई है। एचएसबीसी में मुख्य अर्थशास्त्री (भारत और इंडोनेशिया) प्रांजल भंडारी ने आयुषी चौधरी के साथ लिखे हालिया नोट में कहा कि सबसे अहम बात यह कि शहरी और ग्रामीण भारत में खपत मांग अभी कमजोर है। विनिर्माण में व्यवधान भी उपभोक्ता सामान के कमजोर उत्पादन का पता चलता है।
एक्सचेंजों पर एनएसई का निफ्टी इंडिया कंजम्पशन इंडेक्स पिछले तीन महीने (अगस्त 2024 से अब तक) में अभी तक करीब 6 फीसदी टूट चुका है। इसकी तुलना में इस दौरान निफ्टी-50 में 4 फीसदी की गिरावट आई है। बालिगा का सुझाव है कि अगर निवेशक उपभोग क्षेत्र के शेयर खरीदना चाहते हैं तो उन्हें चुनिंदा शेयरों का रुख अपनाना चाहिए। साथ ही कम से कम एक साल तक बने रहने की सोचना चाहिए।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक व शोध प्रमुख जी. चोकालिंगम का मानना है कि इन शेयरों में कम से कम एक तिमाही और परेशानी रह सकती है। उन्होंने कहा कि हम अगले साल की शुरुआत में उपभोग क्षेत्र के शेयरों का चयन शुरू कर सकते हैं। तब तक काफी हद तक गुबार छंट जाएगा और महंगाई का स्तर भी बहुत ज्यादा चिंताजनक नहीं रह जाएगा। ध्यान रहे, भारत उपभोग से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है और देर-सवेर इसमें उछाल आएगा।