यूपी उपचुनाव में प्रयागराज जिले की फूलपूर सीट को लेकर खूब चर्चाएं हो रही हैं। दरअसल इस सीट पर कौशांबी जिले की चायल सीट से सपा विधायक पूजा पाल बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में वोट मांग रही हैं। इसके अलावा उन्होंने मिर्जापुर की मंझवा सीट पर भी बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार किया है। पूजा पाल 8 महीने पहले राज्यसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर विवादों में आई थीं, लेकिन अब उपचुनाव के दौरान वो अपनी ही पार्टी की सरकार को हत्यारी भी कह रही हैं।
पूजा पाल चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार इस बात को दोहरा रही हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने उन्हें न्याय दिया। पूजा पाल यह बात योगी सरकार द्वारा माफिया अतीक अहमद के खिलाफ की गई कठोर कार्रवाई के पक्ष में कह रही हैं। पूजा पाल की इस बात में सच्चाई भी है कि प्रयागराज और उसके आस-पास के कई जिलों में अतीक अहमद और उसका परिवार आंतक का पर्याय बन चुका था। योगी आदित्यनाथ की सरकार में उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की गई। लेकिन सवाल यह नहीं है कि योगी सरकार, उसके पहले सपा और बसपा सरकारों का अतीक के साथ क्या व्यवहार रहा? सवाल यह है कि 2005 में हुई राजू पाल की हत्या के बाद पूजा पाल ने किस तरह के राजनीतिक टर्न लिए हैं। एक अपराधी से शादी से लेकर अब तक पूजा पाल की जिंदगी राजनीतिक विरोधाभासों से भरी रही है। उनका सबसे विवादित फैसला समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने का माना जाता है जिसकी सरकार को वो अब हत्यारी बता रही हैं।
राजू पाल की हत्या, 2005 का उपचुनाव, पूजा पाल की हार और आगे की राजनीति
2004 में यूपी की कुछ सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुए थे। तब राज्य में दिवंगत मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार थी। इलाहाबाद शहर पश्चिमी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में माफिया अतीक अहमद के भाई अशरफ को राजू पाल ने चुनाव हरा दिया था और इस बात ने अतीक के अहम को ठेस पहुंचाई थी। इसके बाद 2005 की 25 जनवरी को राजू पाल की दिन-दहाड़े सड़क पर दौड़ा हत्या की गई। पूरा शहर दहशत में आ गया।
उस वक्त विपक्ष में मौजूद बीएसपी ने इस घटना का सड़क से सदन तक जमकर विरोध किया और अगले उपचुनाव में इस सीट पर अपनी पार्टी का प्रत्याशी पूजा पाल को बनाया। राजू पाल के विधायक बनने और उसकी हत्या में महज कुछ महीनों का अंतर था। विधायक बनने के बाद ही उसने पूजा पाल से शादी थी। दोनों की शादी 15 जनवरी 2005 को हुई थी और महज 10 दिन बाद राजू पाल की हत्या हुई थी। राजू की हत्या के बाद उपचुनाव में सहानुभूति वोट पूजा पाल को मिले लेकिन जीत अशरफ की हुई। इस चुनाव में धांधली की अफवाहें भी खूब चलीं।
जब पहली बार विधायक बनीं पूजा पाल
इसके बाद साल 2007 में जब बीएसपी की लहर पूरे प्रदेश में चली तो पूजा पाल शहर पश्चिमी सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचीं। बाद में 2012 का चुनाव भी पूजा ने इस सीट से जीता. 2017 में भी पूजा पाल बीएसपी के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ीं लेकिन उन्हें बीजेपी के सिद्धार्थ नाथ सिंह ने हरा दिया। पूजा इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहीं. दूसरे नंबर पर सपा प्रत्याशी ऋचा सिंह थी।
बीएसपी के साथ संबंधों में खटास
अब तक पूजा पाल के संबंध बीएसपी के साथ ठीक थे। चुनाव के कुछ महीने बाद पूजा पाल पर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से मुलाकात के आरोप बीएसपी के तरफ से लगे। उन्हें पार्टी ने निकाल दिया गया। बीएसपी की तरफ से कहा गया कि पूजा पाल पार्टी बदलने की तैयारी कर रही थीं। हालांकि पूजा पाल ने कहा कि उन्होंने सिर्फ राजू पाल केस में कार्रवाई तेज करने का आग्रह करने के लिए डिप्टी सीएम से मुलाकात की थी।
2019 में सपा ज्वाइन कर लिया यू-टर्न
2019 में पूजा पाल ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली। यह वही पार्टी थी जिसकी सरकार में उनके पति की हत्या हुई थी। लेकिन उस वक्त पूजा पाल ने अपने और अखिलेश यादव के सिद्धांतों में समानता बताई थी। दरअसल अखिलेश ने सपा से अतीक को टिकट दिए जाने का विरोध किया था। इसलिए पूजा पाल का तर्क था कि अखिलेश भी आपराधिक तत्वों के खिलाफ हैं।
सपा के टिकट पर विधायक
2022 में पूजा पाल कौशांबी की चायल विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर लड़ीं और जीत भी गईं. लेकिन अब वो उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी के लिए प्रचार कर रही हैं। समाजवादी पार्टी पर आरोप लगा रही हैं। लगभग तय माना जा रहा है कि अब पूजा पाल बीजेपी का रुख अख्तियार कर सकती हैं। यह उनके राजनीतिक जीवन में एक और नया टर्न होगा।
उठते रहेंगे सवाल
यूपी में विधानसभा उपचुनाव के नतीजे 23 नवंबर को सामने आ जाएंगे। यह भी पता चल जाएगा कि जिन सीटों पर पूजा पाल प्रचार कर रही हैं, वहां के नतीजे कैसे आए। लेकिन यूपी में अपराध की एक दुर्दांत घटना से जुड़े व्यक्तिगत दुख को झेलते हुए राजनीति में आने वाली पूजा पाल का नया सफर तय हो चुका है। बहुजन समाज पार्टी उनका पहला और नैसर्गिक ठिकाना था, सपा ज्वाइन करने को लेकर उन पर आगे भी सवाल होते रहेंगे, बीजेपी के साथ उनके सफर की तो अभी बस शुरुआत हुई है।