पिछले 6 महीने में एक अलग ट्रेंड उभरकर सामने आया है। एक ओर जहां टीयर-3 शहरों और गांवों में मांग बढ़ रही है, वहीं शहरों में तमाम कैटेगरी में खपत सुस्त हो रही है। पिछले कुछ महीनों में कई डोमेस्टिक ग्रोथ इंडिकेटर्स में बदलाव देखने को मिला है। हम यहां 10 अहम इकोनॉमिक इंडिकेटर्स के बारे में बता रहे हैं, जिनसे शहरी मांग में सुस्ती के संकेत मिलते हैं।
सर्विसेज में गिरावट, मैन्युफैक्चरिंग PMI
पिछले कुछ महीनों में मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज गतिविधियों में गिरावट रही है, जो कंज्म्प्शन के साथ काफी करीबी रूप से जुड़ी हैं। यह दिखाता है कि बिजनेस इकाइयां प्रोडक्शन और सर्विसेज घटा रही हैं, जिसका मतलब है कि जॉब ग्रोथ में कमी होगी।
रिटेल सेल्स ग्रोथ में सुस्ती
रिटेल सेल्स कंज्यूमर डिमांड का प्रमुख इंडिकेटर है, जिसमें सितंबर 2024 तिमाही के दौरान इससे पिछली तिमाही के मुकाबले सुस्ती देखने को मिली। इसके अलावा, दोनों तिमाहियों में ग्रोथ सालाना आधार पर कम रही है, जो इस बात का संकेत है कि कंज्यूमर्स ने इस फिस्कल ईयर में अपन खर्च कम कर रखा है।
गैर-जरूरी खर्च में गिरावट
कंज्यूमर्स गैर-जरूरी खर्च में कमी कर रहे हैं और इसके बजाय जरूरी आइटम पर खर्च कर रहे हैं या फिर बचत पर फोकस कर रहे हैं। बाहर खाना, फैशन, एंटरटेनमेंट सभी शहरी खपत से जुड़े क्षेत्र हैं और कंज्यूमर ट्रेंड्स में किसी भी तरह का बदलाव इन क्षेत्रों पर असर डालेगा।
क्रेडिट ग्रोथ में सुस्ती
क्रेडिट ग्रोथ में सुस्ती का मतलब लोन के बिजनेस की रफ्तार सुस्त होना है। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां (NBFCs) खास तौर पर अनसिक्योर्ड सेगमेंट में अपने लेंडिंग नॉर्म्स को सख्त कर रही हैं।
माइक्रोफाइनेंस लोन ग्रोथ
माइक्रोफाइनेंस लोन ग्रोथ में सुस्ती का मतलब यह भी हो सकता है कि रिजर्व बैंक अनसिक्योर्ड लेंडिंग पर शिकंजा कस रहा हो। हालांकि, इससे यह भी पता चलता है कि कंज्यूमर्स ऊंची ब्याज दरों पर लोन लेने को इच्छुक नहीं हैं।
पैसेंजर व्हीकल सेल्स में गिरावट
पैसेंजर व्हीकल सेल्स को अक्सर शहरी मांग के बारे में पता करने का बेहतर जरिया माना जाता है। इसमें फिलहाल गिरावट देखने को मिल रही है। दूसरी तरफ, टू-व्हीलर्स को गांवों में मांग का पैमाना माना जाता है और इसमें बढ़ोतरी दिख रही है। पैसेंजर व्हीकल की सेल्स में सुस्ती का मतलब है कि आर्थिक अनिश्चितता की वजह से खरीदार इसको लेकर ठहर गए हैं।
फ्यूल ग्रोथ
जेएम फाइनेंशियल का कहना है कि हाल के महीनों में फ्यूल कंजम्प्शन और पैसेंजर व्हीकल की सेल्स, दोनों में गिरावट रही है। फ्यूल कंजम्प्शन का आर्थिक गतिविधि से काफी करीबी संबंध होता है। इससे यह भी पता चल रहा है कि ट्रांसपोर्ट पर निर्भर सेक्टरों में सुस्ती देखने को मिल रही है।
टोल ग्रोथ
कंज्यूमर्स पिछली कुछ तिमाहियों में गैर-जरूरी ट्रैवल को टाल रहे हैं। यहां तक कि ट्रांसपोर्टेशन पर निर्भर रहने वाले बिजनेस में भी सुस्ती है और इसका असर टोल ग्रोथ पर देखने को मिल रहा है।
सरकारी कैपेक्स
सरकारी कैपिटल एक्सपेंडिचर में काफी गिरावट देखने को मिल रही है। अनुमान है कि केंद्र सरकार बजट 2024-25 में इस मद में तय राशि (11.11 लाख करोड़ रुपये) का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगी। सरकारी कैपिटल एक्सपेंडिचर में गिरावट का असर शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाकों में देखने को मिल रहा है।
राज्य का कैपेक्स
शहरी विकास के लिए राज्य स्तर की कई इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं बेहद अहम हैं, मसलन सड़कों का विस्तार, सफाई परियोजनाएं या पब्लिक ट्रांसपोर्ट। राज्यों में कैपिटल एक्पेंडिचर की सुस्ती का मतलब है कि राज्य के लोगों की जेब में कम पैसा पहुंच रहा है। पिछले दशक में राज्यों की वास्तविक कैपिटल एक्सपेंडिचर बजच अनुमानों का महज 83 पर्सेंट रहा।