अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने एक बार कहा था कि अगर ऑयल आपके कंट्रोल आ जाता है तो आप दुनिया को कंट्रोल कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप ने इस बात को दिल से लगा लिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद ट्रंप ने जो बयान दिया है, उससे इसका संकेत मिलता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के पास किसी दूसरे देश से ज्यादा ‘लिक्विड गोल्ड’ है। लिक्विड गोल्ड से उनका मतलब ऑयल और गैस से था। उनके इस बयान से ऑयल मार्केट्स में भूकंप आ गया। एनालिस्ट्स ऑयल की कीमतें गिरकर 60 डॉलर प्रति बैरल तक आ जाने का अनुमान जता रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद ट्रंप ने कहा, “आप ऑयल की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दीजिए।” उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका अपने कर्ज को घटाएगा। अमेरिका में हम टैक्स कम करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो चीज अमेरिका के पास है, वह चीन के पास नहीं है। दरअसल, ट्रंप के लिए ऑयल सिर्फ एक संसाधन नहीं है बल्कि यह एक हथियार है। उन्होंने टैरिफ और प्रतिबंधों के बारे में जिस तरह से चर्चा की है, उससे ग्लोबल ऑयल मार्केट को साफ संकेत गया है। सिटी के एनालिस्ट्स का मानना है कि ट्रप की पॉलिसी का मिलाजुला असर दिख सकता है। इससे ऑयल के आयात पर निर्भर करने वाले देशों को मुश्किल आ सकती है।
एनालिस्ट्स का कहना है कि ट्रंप के बतौर राष्ट्रपति अगले चार साल के कार्यकाल में ऑयल की कीमतों में नरमी आएगी। अमेरिका में ऑयल का उत्पादन बढ़ने और ट्रेड टैरिफ की वजह से ऑयल की औसत कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल तक आ जाएगी। ट्रंप ने ईरान और वेनेजुअला के ऑयल के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाने का बात कही है। इससे दुनिया में ऑयल की सप्लाई घटेगी। इससे कुछ समय के लिए कीमतों में तेजी आ सकती है। अभी अमेरिका दुनिया में ऑयल का सबसे बड़ा उत्पादक है। ग्लोबल सप्लाई में उसकी 22 फीसदी हिस्सेदारी है। 11 फीसदी हिस्सेदारी के साथ सऊदी अरब दूसरे नंबर पर है।
हिंडाल्को इंडस्ट्रीज के शेयरों में 7 नवंबर को 8.4 फीसदी गिरावट आई। इसकी वजह Hindalco Industries की अमेरिकी सब्सिडियरी नोवेलिस के कमजोर नतीजे हैं। सितंबर तिमाही में नोवेलिस की नेट इनकम में गिरावट आई है। बुल्स का कहना है कि बे मिनेटे प्रोजेक्ट के 2026 की दूसरी तिमाही में चालू हो जाने की उम्मीद है। इससे EBITDA प्रति टन 1,000 डॉलर तक बढ़ सकता है। इस प्रोजेक्ट के अच्छे प्रोग्रेस की वजह से नोवेलिस का लंबी अवधि का आउटलुक पॉजिटिव लगता है। बेयर्स का कहना है कि FY25 की दूसरी छमाही में नोवेलिस के अर्निग्स आउटलुक की तस्वीर साफ नहीं है। कंपनी 4.9 अरब डॉलर का पूंजीगत खर्च कर रही है। FY26 में कैपिटल एक्सपेंडिचर पीक पर पहुंच जाने का अनुमान है। इससे नोवेलिस पर कर्ज का बोझ बढ़ सकता है।
एलटी फूड्स के शेयर 8 नवंबर को 1.5 फीसदी गिरकर 390 रुपये पर बंद हुए। हालांकि, मोतीलाल ओसवाल ने LT Foods के शेयरों को कवर करना शुरू किया है। उसने इसके शेयरों में 36 फीसदी तेजी का अनुमान जताया है। बुल्स का कहना है कि एलटी फूड्स की मौजूदगी 80 से ज्यादा देशों में हो गई है। FY19-24 के दौरान कंपनी के रेवेन्यू की CAGR 15 फीसदी रही है। कंपनी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी मौजूदी बढ़ाने के साथ ही मार्जिन में इम्प्रूवमेंट की कोशिश कर रही है। राइस सेगमेंट में इंडिया में कंपनी की बाजार हिस्सेदारी 30 फीसदी है, जबकि अमेरिकी बाजार में 50 फीसदी है। बेयर्स का कहना है कि जलवायु की स्थिति में बदलाव का असर चावल के उत्पादन पर पड़ सकता है। बाजार में बढ़ती प्रतियोगिता के साथ करेंसी की कीमतों में उतारचढ़ाव का भी रिस्क दिख रहा है।