फर्स्ट ग्लोबल की संस्थापक, चेयरपर्सन और प्रबंध निदेशक देविना मेहरा का कहना है कि लार्ज कैप शेयरों में लगातार गिरावट की संभावना कम है। हालांकि उन्होंने कुछ चुनिंदा मिड कैप और स्मॉल कैप शेयरों के अधिक मूल्यांकन को लेकर चेतावनी दी है।
उनका कहना है कि हालांकि कई फंड प्रबंधकों को भारत की वृहद अर्थव्यवस्था में अचानक कमजोरी दिखी है और यह स्थिति तो कुछ वक्त से बनी हुई थी। उन्होंने पूंजीगत वस्तुओं और बीमा एवं वित्तीय सेवाओं (बीएफएसआई) पर कम दांव लगाने के अपने रुख को बरकरार रखा है।
उन्होंने कहा, ‘40 वर्ष पूर्व सेंसेक्स के अस्तित्व में आने के बाद से भारतीय शेयरों ने 15-16 प्रतिशत रिटर्न दिया है। हालांकि इक्विटी में स्वाभाविक रूप से उतार-चढ़ाव होता है लेकिन इस बात को हम आमतौर पर भूल जाते हैं। अगर निवेशकों ने वर्ष 2011 में 100 रुपये लगाए होते तो उन्हें अगले 10 वर्षों में 230 रुपये रिटर्न के तौर पर मिलते। वर्ष 1980 में किसी ने 100 रुपये लगाए होते तो उन्हें अगले 10 वर्षों में 700 रुपये मिल गए होते।’
मेहरा शेयर बाजार में निवेश के लिए सतर्कता भरी रणनीति अपनाने को तरजीह देती हैं। वह पिछली कुछ तिमाहियों से बाजार में गिरावट को लेकर चेतावनी देती रही हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ मौकों पर बाजार में गिरावट दोहरे अंक में रही है। लेकिन कई सूचकांकों में शीर्ष स्तर से गिरावट फिलहाल दोहरे अंकों में नहीं रही है।
मेहरा का कहना है, ‘अगर आप इतिहास के पन्ने पलटें तो सेसेंक्स के इतिहास में वर्ष 1994-2003 ही ऐसी अवधि है जब सेंसेक्स का रिटर्न शून्य था। वर्ष 2003 और 2007 के बीच बाजार में 6 गुना की तेजी आई और इसकी वजह वैश्विक इक्विटी में तेजी आना थी। शेयर बाजार में धैर्य रखना चाहिए। अगर हालात थोड़े अनिश्चित हैं तब इससे बाहर निकलने का कोई अर्थ नहीं है।’
हालांकि जब शेयर बाजार में गिरावट हो रही हो तब इसमें अपने निवेश को बरकरार रखना जोखिमपूर्ण है क्योंकि लोग अपने पैसे गंवा देते हैं। हालांकि वह आगाह भी करती हैं कि ऐसी स्थिति में निवेश न करने और मौके गंवाने का भी जोखिम होता है। उन्होंने कहा कि निवेशकों को जोखिम नियंत्रण प्रणाली बनाने की जरूरत है ताकि वे अपने घाटे और गिरावट को सीमित कर सकें।
मेहरा ने बाजार में बुलबुले वाले क्षेत्रों को लेकर आगाह भी किया फिर चाहे वह आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) का उन्माद हो या मिड कैप, स्मॉल कैप और माइक्रोकैप हों। उनका कहना है कि भारत में सूचीबद्ध हुई सभी कंपनियों में से आधे से अधिक की शेयरों की कीमतें शून्य हो गई हैं।
मेहरा कहती हैं, ‘निवेशकों को कुछ घाटा सहने के लिए तैयार रहने की जरूरत है लेकिन उन्हें अवसर गंवा देने के डर (फोमो) से बनी होड़ के चक्कर में ज्यादा पैसे नहीं गंवाने चाहिए। प्राइस टू अर्निंग (पीई) एक ऐसा मोटा तरीका है जिससे बाजार में बलबुले की थाह ली जा सकती है। कुल बाजार का पीई बहुत अधिक नहीं है। भारत एक महंगा बाजार रहा है लेकिन अब भी हम खतरनाक श्रेणी में नहीं हैं।’
मिडकैप, स्मॉल कैप और माइक्रोकैप शेयरों में निवेश को लेकर एहतियात बरतने का सुझाव देते हुए मेहरा कहती हैं कि अगर इन शेयरों में गिरावट होती है तो इनमें पूरी तरह सुधार दिखना काफी मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा, ‘वर्ष 2008-09 में स्मॉलकैप सूचकांक में 78 फीसदी की गिरावट हुई थी। उस स्तर पर वापसी करने में इसे 8 वर्ष लगे।’
मेहरा का मानना है कि अगर कोई कारोबार अच्छा है और उसकी कीमतें सही हैं तो वह निवेशकों को आकर्षित करता रहेगा। जहां तक आईपीओ के उन्माद का सवाल है, निवेशक वास्तव में आईपीओ को लॉटरी की तरह लेते हैं और वे एक हफ्ते में बिकवाली कर देते हैं।
वह कहती हैं कि आईपीओ का सबस्क्रिप्शन इस बात का संकेत नहीं है कि कंपनी कितनी अच्छी या खराब है। कई दफा ऐसा भी हुआ कि आईपीओ को अच्छा सबस्क्रिप्शन नहीं मिला लेकिन कंपनी ने कुछ वक्त बाद बेहतर रिटर्न दिया। मेहरा का कहना है कि बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) सही काम कर रहा है और सही दिशा में कदम उठा रहा है।