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मार्केट में रिकवरी आने में कुछ तिमाही का लग सकता है समय, मार्सेलस इनवेस्टमेंट के सौरव मुखर्जी ने बताई वजह

स्टॉक मार्केट में 4 नवंबर को बड़ी गिरावट दिखी। बीएसई सेंसेक्स सुबह के कारोबार में 1000 प्वाइंट्स से ज्यादा लुढ़क गया था। निफ्टी 50 में भी 300 प्वाइंट्स से ज्यादा गिरावट दिखी। नवंबर की शुरुआत स्टॉक मार्केट्स के लिए पॉजिटिव नहीं दिख रही है। 1 नवंबर को संवत कारोबार में भी प्रमुख सूचकांक लाल निशान में बंद हुए थे। इंडियन मार्केट में जारी बड़ी गिरावट को समझने के लिए मनीकंट्रोल ने सौरव मुखर्जी से बातचीत की। मुखर्जी मार्सेलस इनवेस्टमेंट मैनेजर्स के फाउंडर और चीफ इनवेस्टमेंट अफसर हैं। उन्होंने कहा कि मार्केट को गिरावट से उबरने में कुछ समय लग सकता है। कुछ तिमाहियों तक मार्केट में सुस्ती दिख सकती है।

उन्होंने कहा कि कोविड की महामारी के बाद इंडियन इकोनॉमी में जर्बदस्त रिकवरी आई। FY22, FY23 और FY24 में जीडीपी ग्रोथ 7.5 फीसदी थी। EPS ग्रोथ 20 फीसदी थी। इस वजह से छोटी कंपनियों के शेयरों की कीमतें भी आसमान में पहुंच गईं। सरकारी कंपनियों के शेयरों की बात करें तो 2022-23 पीएसयू स्टॉक्स के लिए शानदार रहा। लेकिन, पिछले छह महीनों से इकोनॉमी में सुस्त पड़ रही है। निवेशकों को यह समझने की जरूरत है कि कोविड के बाद आई रिकवरी साइक्लिकल थी, यह स्ट्रक्चरल नहीं थी।

मुखर्जी ने कहा कि हम मल्टी-ईयर क्वार्टर स्लोडाउन में प्रवेश कर रहे हैं। इसकी पुष्टि जून तिमाही और सितंबर तिमाही की अर्निंग्स से मिली है। लेकिन, Asian Panits, HDFC Bank, Titan Divis Lab जैसी दिग्गज कंपनियों की अर्निंग्स ग्रोथ ज्यादातर कंपनियों के मुकाबले बेहतर है। अब मार्केट पीएसयू स्टॉक्स से दूरी बनाता दिख रहा है। इकोनॉमी सुस्त पड़ने का मतलब है कि मार्केट की दिलचस्पी बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड वाली कंपनियों के स्टॉक्स में होगी।

 

यह स्लोडाउन कब तक रहेगा? इसके जवाब में मुखर्जी ने कहा कि जब कोई केंद्रीय बैंक इंटरेस्ट रेट 200-250 बेसिस प्वाइंट्स बढ़ाता है तो उसका असर एक साल से लेकर 18 महीने बाद दिखता है। इसके चलते इकोनॉमी की रफ्तार सुस्त पड़ने लगती है। 2022 और 2023 में इंटरेस्ट रेट बढ़ने का असर 2024 में दिख रहा है। कंजम्प्शन ग्रोथ में सुस्ती नजर आ रही है। छोटी-बड़ी चीजों की खरीदारी पर इसका असर दिखा है।

कोविड के दौरान सरकार की तरफ से बड़े पैकेज आए थे। पिछले तीन सालों में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट डेफिसिट कम किया है। फिस्कल पॉलिसी का फोकस भी घाटा कम करने पर है। मॉनेटरी पॉलिसी का फोकस ग्रोथ की बजाय इनफ्लेशन को कंट्रोल करने पर रहा है। ऐसे में सितंबर तिमाही के नतीजों में अर्निंग्स ग्रोथ जीरो के करीब रह सकती है। अगर आरबीआई इस साल दिसंबर में इंटरेस्ट रेट में कमी करता है तो अगले साल के मध्य या अंत तक तक इकोनॉमी में रिकवरी देखने को मिल सकती है।

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