पिछले कुछ हफ्तों से ब्रिक्स (BRICS) गठबंधन ने पेट्रोडॉलर की मौजूदा महत्वपूर्ण भूमिका और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अमेरिका के प्रभाव को चुनौती देने के तरीकों पर चर्चा की है। हालांकि ये चर्चाएं पिछले एक साल से चल रही हैं, लेकिन अब यह आर्थिक गठबंधन पश्चिमी मुद्रा को चुनौती देने के लिए पहले से कहीं अधिक तैयार दिखाई देता है, खासकर तेल व्यापार के क्षेत्र में।
गठबंधन ने पिछले साल भर में स्थानीय मुद्राओं पर खासा तवज्जो दी है। यह प्रयास चीन जैसे देशों के लिए महत्वपूर्ण रहा है, जिसकी मुद्रा युआन ने वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत की है। भले ही युआन ने अभी तक अमेरिकी डॉलर को पूरी तरह से पीछे नहीं छोड़ा है, लेकिन डॉलर की गिरावट की शुरुआत हो चुकी है। अटलांटिक काउंसिल के डॉलर डॉमिनेंस मीटर के अनुसार, वैश्विक यूएस डॉलर भंडार की हिस्सेदारी 14% से अधिक घट चुकी है। यदि BRICS गठबंधन तेल क्षेत्र में वैकल्पिक व्यापार मुद्राओं पर ध्यान केंद्रित करता है, तो यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है। आसान शब्दों में कहें तो अगर BRICS देश तेल व्यापार के लिए डॉलर की जगह अपनी स्थानीय मुद्रा का इस्तेमाल करने लगे तो अमेरिका की हालत खराब हो सकती है।
हाल ही में सऊदी अरब ने कहा कि वे “नई संभावनाओं पर बातचीत करने के लिए तैयार हैं।” सऊदी ने ये बात तेल व्यापार के संदर्भ में कही। यह पश्चिम के लिए गंभीर चिंता का कारण बन सकता है। खासकर अमेरिका के लिए, क्योंकि पेट्रोडॉलर के वैश्विक स्तर पर अप्रचलित होने से भारी आर्थिक संकट आ सकता है। आइए जानते हैं कि पेट्रोडॉलर से हटने से अमेरिका को क्यों खतरा हो सकता है।
पेट्रोडॉलर क्या है?
1970 के दशक में अमेरिकी डॉलर और कच्चे तेल के बीच संबंध स्थापित हुआ था। इस समय अमेरिका और सऊदी अरब के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत सऊदी अरब और ओपेक (OPEC) देशों ने तेल का व्यापार केवल अमेरिकी डॉलर में करने पर सहमति जताई। इसका नतीजा यह हुआ कि तेल की खरीदारी करने वाले देशों को अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता पड़ी, जिससे यूएस डॉलर वैश्विक व्यापार में प्रमुख मुद्रा बन गया। इस व्यवस्था को “पेट्रोडॉलर” कहा जाता है। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली, क्योंकि पूरी दुनिया को तेल के लिए डॉलर की जरूरत होती थी, जिससे अमेरिकी मुद्रा की मांग बनी रही।
पेट्रोडॉलर के खत्म होने से अमेरिका को संकट क्यों हो सकता है?
अमेरिकी डॉलर की वैश्विक मांग में गिरावट
पेट्रोडॉलर व्यवस्था ने दशकों से अमेरिकी डॉलर को वैश्विक व्यापार की प्रमुख मुद्रा बनाए रखा है। अगर तेल व्यापार अन्य मुद्राओं में शुरू होता है, तो अमेरिकी डॉलर की मांग में भारी गिरावट आ सकती है। जब डॉलर की मांग घटेगी, तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है, जिससे अमेरिकी वित्तीय स्थिरता को खतरा होगा। यह स्थिति डॉलर के मूल्य में गिरावट का कारण बनेगी और अमेरिकी व्यापार घाटे को बढ़ा सकती है।
अमेरिका के ऋण वित्तपोषण पर प्रभाव
अमेरिकी डॉलर की मांग कम होने से अमेरिका के लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों से ऋण लेना महंगा हो जाएगा। वर्तमान में, अमेरिका अपने बड़े पैमाने पर ऋण का वित्तपोषण करने के लिए विदेशी निवेश पर निर्भर है। पेट्रोडॉलर से हटने के बाद विदेशी निवेशक डॉलर के बजाय अन्य मुद्राओं को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे अमेरिकी सरकार के लिए उधार लेने की लागत में वृद्धि हो जाएगी। इसका सीधा असर अमेरिकी बजट और भविष्य की आर्थिक योजनाओं पर पड़ेगा।
वैश्विक आर्थिक संतुलन में बदलाव
यदि ब्रिक्स देशों द्वारा युआन, रुपये, या किसी अन्य मुद्रा का इस्तेमाल तेल व्यापार के लिए किया जाने लगे, तो यह वैश्विक आर्थिक संतुलन में एक बड़ा बदलाव होगा। इससे अमेरिकी आर्थिक वर्चस्व का कमजोर होना तय है। चीन, रूस, भारत और अन्य उभरते हुए देशों को वैश्विक आर्थिक केंद्र में जगह मिल सकती है, जिससे अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और राजनीतिक ताकत कमजोर पड़ जाएगी।
भू-राजनीतिक प्रभाव और शक्ति संतुलन
पेट्रोडॉलर का अंत सिर्फ आर्थिक संकट तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका भू-राजनीतिक प्रभाव भी गहरा होगा। अमेरिका ने दशकों से अपने डॉलर की ताकत का इस्तेमाल करके वैश्विक राजनीति और कूटनीति में अपना प्रभुत्व बनाए रखा है। अगर पेट्रोडॉलर खत्म होता है, तो अमेरिका का भू-राजनीतिक प्रभाव कमजोर हो सकता है, जिससे उसके सहयोगी देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में उसकी स्थिति कमजोर पड़ सकती है। इसके परिणामस्वरूप, वैश्विक शक्ति संतुलन बदल सकता है, जिसमें चीन, रूस, भारत और अन्य उभरते हुए राष्ट्र अपनी स्थिति को मजबूत कर सकते हैं।
क्या पेट्रोयुआन पेट्रोडॉलर की जगह ले सकता है?
पेट्रोडॉलर, दशकों से वैश्विक तेल व्यापार का प्रमुख माध्यम रहा है, जिससे अमेरिकी डॉलर को वैश्विक वर्चस्व मिला हुआ है। लेकिन हाल के वर्षों में चीन के युआन (CNY) के उदय और ब्रिक्स (BRICS) जैसे गठबंधनों की मुद्राओं के प्रचार की कोशिशों ने एक नई बहस छेड़ दी है: क्या पेट्रोयुआन पेट्रोडॉलर की जगह ले सकता है?
चीन ने वैश्विक बाजार में अपनी मुद्रा युआन की स्थिति मजबूत करने के प्रयासों को तेज कर दिया है, खासकर तेल व्यापार में। साथ ही, कई प्रमुख तेल उत्पादक देश, विशेष रूप से सऊदी अरब, अब डॉलर से परे नई संभावनाओं की ओर देख रहे हैं। ऐसे में यह सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या युआन अमेरिकी डॉलर की जगह लेने के लिए तैयार है।
पेट्रोयुआन की संभावना
चीन का बढ़ता वैश्विक प्रभाव
चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक है और इसका आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। चीन ने अपने अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक साझेदारों के साथ युआन में लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अलावा, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और अन्य अंतर्राष्ट्रीय निवेश योजनाओं के माध्यम से चीन ने कई देशों में महत्वपूर्ण आर्थिक पकड़ बनाई है, जिससे युआन को वैश्विक व्यापार में एक प्रमुख मुद्रा के रूप में उभरने का अवसर मिला है।
सऊदी अरब और तेल निर्यातक देशों की भूमिका
सऊदी अरब और अन्य ओपेक देशों की भूमिका पेट्रोयुआन के उदय में अहम साबित हो सकती है। सऊदी अरब, जो प्रमुख तेल निर्यातक है, उसने हाल ही में संकेत दिए हैं कि वह तेल व्यापार में अमेरिकी डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं को अपनाने के लिए तैयार है। अगर सऊदी अरब और अन्य तेल उत्पादक देश चीन के साथ युआन में तेल व्यापार करना शुरू कर देते हैं, तो यह पेट्रोयुआन के लिए एक बड़ा कदम हो सकता है।
बढ़ती वैश्विक मुद्रास्फीति और अमेरिकी डॉलर की कमजोरी
अमेरिकी डॉलर की दीर्घकालिक स्थिरता पर सवाल उठने लगे हैं, खासकर कोविड-19 महामारी के बाद से बढ़ती मुद्रास्फीति और आर्थिक अस्थिरता के कारण। अगर तेल व्यापार में युआन को प्राथमिकता मिलती है, तो यह अमेरिकी डॉलर के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।
डी-डॉलराइजेशन का ग्लोबल ट्रेंड
कई देश अब डी-डॉलराइजेशन (डॉलर पर निर्भरता कम करने) की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, विशेषकर रूस, चीन, और ईरान जैसे देश, जिन्होंने हाल के वर्षों में अमेरिकी प्रतिबंधों से निपटने के लिए डॉलर से दूरी बनाने का प्रयास किया है। अगर वैश्विक ऊर्जा बाजार में युआन को बढ़ावा मिलता है, तो यह प्रक्रिया तेज हो सकती है और पेट्रोयुआन का उदय संभावित हो सकता है।
पेट्रोयुआन के सामने चुनौतियां
युआन की परिवर्तनीयता की कमी
युआन की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह पूरी तरह से परिवर्तनीय मुद्रा नहीं है। परिवर्तनीयता (Convertibility) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक देश की मुद्रा को बिना किसी प्रतिबंध या नियंत्रण के दूसरी मुद्रा में बदला जा सकता है। जब किसी देश की मुद्रा परिवर्तनीय होती है, तो इसे विदेशी मुद्रा बाजार में स्वतंत्र रूप से खरीदा या बेचा जा सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश और वित्तीय लेनदेन में सुगमता हो। चीनी सरकार युआन की विनिमय दर पर नियंत्रण रखती है और यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में डॉलर की तरह स्वतंत्र रूप से व्यापार नहीं कर सकता। जब तक युआन पूरी तरह परिवर्तनीय नहीं बनता, तब तक इसका पेट्रोडॉलर की जगह लेना मुश्किल होगा।
अमेरिकी डॉलर की मजबूती और स्थिरता
अमेरिकी डॉलर वैश्विक व्यापार और निवेश की सबसे भरोसेमंद मुद्रा रही है। इसका व्यापक उपयोग, डॉलर-आधारित अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की ताकत, और अमेरिका की आर्थिक स्थिरता इसे एक सुरक्षित मुद्रा बनाते हैं। डॉलर के मुकाबले युआन को अभी भी इस भरोसे और स्थिरता को साबित करना होगा।
चीन की राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियां
चीन के सामने आंतरिक राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियां भी हैं, जैसे कि बढ़ता कर्ज और धीमी आर्थिक वृद्धि, जो युआन की वैश्विक स्वीकृति को बाधित कर सकती हैं। इसके अलावा, पश्चिमी देशों के साथ चीन के भू-राजनीतिक तनाव भी युआन को वैश्विक वित्तीय प्रणाली में व्यापक रूप से अपनाने में मुश्किल पैदा कर सकते हैं।
हालांकि चीन की आर्थिक ताकत और युआन का बढ़ता प्रभाव पेट्रोडॉलर के विकल्प के रूप में पेट्रोयुआन को उभार सकता है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियां हैं। भविष्य में अगर चीन इन चुनौतियों को हल कर लेता है और वैश्विक तेल व्यापार में युआन का उपयोग बढ़ता है, तो पेट्रोयुआन अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है। लेकिन फिलहाल, पेट्रोडॉलर अभी भी वैश्विक तेल व्यापार का प्रमुख खिलाड़ी बना हुआ है।
ब्रिक्स देशों द्वारा पेट्रोडॉलर से हटने और अन्य मुद्राओं को बढ़ावा देने की कोशिशें अमेरिका के लिए गंभीर आर्थिक और राजनीतिक संकट का कारण बन सकती हैं। अमेरिका के लिए आने वाला समय कठिन हो सकता है, क्योंकि ब्रिक्स गठबंधन और अन्य देश पेट्रोडॉलर से दूरी बनाने के तरीकों पर तेजी से काम कर रहे हैं। ऐसे में अमेरिकी अर्थव्यवस्था और उसकी वैश्विक स्थिति पर बड़ा असर पड़ सकता है।