विश्लेषकों का मानना है कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधान सभा चुनावों में भाजपा को कम बहुमत या हार मिलने से भी बाजारों पर ज्यादा प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है। उनका कहना है कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए बाजारों को पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक स्थिति और तेल की कीमतों पर उसके असर, नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे और घरेलू स्तर पर आगामी कॉरपोरेट नतीजों जैसी कई बड़ी बातों पर चिंता है।
वैश्विक केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक नीति पर भी सभी की निगाहें लगी रहेंगी। उनका मानना है कि अगर सभी राज्य चुनावों – फिलहाल हरियाणा और जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र (संभवत: नवंबर में) और दिल्ली (संभवत: फरवरी में) में भाजपा का सफाया हो गया तो बाजार की घबराहट भरी प्रतिक्रिया हो सकती है।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक और शोध प्रमुख जी चोकालिंगम के अनुसार बाजार ने लोकसभा चुनावों के नतीजों से संकेत लिया है और इस हद तक कि वे पहले ही इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं कि अब राज्यों के चुनावों में क्या हो सकता है।
उन्होंने कहा, ‘महाराष्ट्र को छोड़कर सभी राज्य लोक सभा सीटों की संख्या के लिहाज से छोटे हैं। इसलिए इन राज्यों के चुनाव परिणामों का प्रभाव बाजारों पर काफी कम असर होगा। इस समय, पश्चिम एशिया में चल रहे भू-राजनीतिक संकट के कारण कच्चे तेल की कीमतें कैसी रहती हैं, यह घरेलू बाजारों की चाल के लिए ज्यादा मायने रखेगा।’
इस बीच, एग्जिट पोल में हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा में करीब एक दशक बाद कांग्रेस की सत्ता की वापसी का अनुमान लगाया गया है। लेकिन एग्जिट पोल के अनुसार जम्मू-कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना है जिसमें नैशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन बहुमत के 46 के आंकड़े के करीब पहुंच सकता है।
स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा का मानना है, ‘बाजारों में राज्य चुनावों के संभावित परिणाम का असर काफी हद तक दिख चुका है। हालांकि महाराष्ट्र महत्वपूर्ण बना हुआ है। वहां हार से नकारात्मक प्रतिक्रिया हो सकती है। बहरहाल, अगले कुछ दिनों में बाजार को कई अन्य चीजों की भी चिंता है, जैसे कि पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक संघर्ष, आरबीआई की नीति और फिर कॉरपोरेट नतीजों का सीजन। इन सभी बातों से अल्पावधि से मध्यावधि में बाजार में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है।’
किसान राजनीति और राज्य चुनाव
विश्लेषकों का मानना है कि राज्यों के चुनाव परिणाम, विशेष रूप से हरियाणा और महाराष्ट्र में, ‘कृषि राजनीति’ के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं और आगे यह स्पष्ट हो जाएगा कि केंद्र और राज्यों की सरकारें किसानों की मांगों से कैसे निपटती हैं। नोमुरा के विश्लेषकों के अनुसार हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे कृषि-प्रधान राज्यों में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार का मकसद उपभोक्ताओं और खाद्य उत्पादकों के हितों में संतुलन स्थापित करना है। विश्लेषकों का कहना है कि तकनीकी नजरिये से सेंसेक्स को 79,572 के स्तर के 100 डीएमए के आसपास समर्थन उपलब्ध है।
प्रभुदास लीलाधर में टेक्नी कल रिसर्च के उपाध्यक्ष वैशाली पारेख का कहना है, ‘सेंसेक्स को आगे बढ़ने के लिए 83,400 के 20-डीएमए स्तर से ऊपर डटे रहने की जरूरत होगी। इस सप्ताह सेंसेक्स को 79,800 स्तर और निफ्टी के लिए 24,400 पर समर्थन मिलेगा।’