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IPO से पहले NSE को मिली गुड न्यूज, इस केस में SEBI ने ₹643 करोड़ के सेटलमेंट को दी मंजूरी

मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) के बोर्ड ने शुक्रवार को एनएसई और उसके पूर्व एमडी विक्रम लिमये सहित अन्य अधिकारियों के केस में 643 करोड़ रुपये के सेटेलमेंट को मंजूरी दे दी है। सेबी के इतिहास में यह सबसे बड़ा सेटलमेंट है। एनएसई और उसके अधिकारियों पर आरोप था कि उन्होंने टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग करने वाले कुछ ट्रेडर्स के खिलाफ उचित कदम नहीं उठाए थे। जिसकी वजह से उन्हें अन्य की तुलना में गलत फायदा हुआ था। बता दें, सेबी को बताया गया था कि 25 सितंबर को एनएसई और अन्य आरोपियों ने जुर्माने की राशि जमा कर दी है। इसके अलावा दोषियों (एनएसई और शेनॉय को छोड़कर) ने कम से कम 14 दिनों का फ्री पब्लिक सर्विस देने का वचन पत्र दिया है। IPO से पहले एनएसई के लिए यह अच्छी खबर मानी जा रही है।

क्या है पूरा मामला?

2008 में ट्रेडिंग एक्सेस प्वाइंट (TAP) नाम का एक साफ्टवेयर ट्रेडिंग सदस्यों के टेडिंग सिस्टम में इंस्टॉल किया गया था। दिसंबर 2013 में ‘trimmed TAP’ और फरवरी 2016 में ‘direct connect’ को ट्रेडिंग एक्सेस प्वाइंट के विकल्प के तौर पर लाया गया था। यह इक्विटी सेगमेंट में सितंबर 2019 तक TAP के साथ जारी रहा।

मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) के बोर्ड ने शुक्रवार को एनएसई और उसके पूर्व एमडी विक्रम लिमये सहित अन्य अधिकारियों के केस में 643 करोड़ रुपये के सेटेलमेंट को मंजूरी दे दी है। सेबी के इतिहास में यह सबसे बड़ा सेटलमेंट है। एनएसई और उसके अधिकारियों पर आरोप था कि उन्होंने टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग करने वाले कुछ ट्रेडर्स के खिलाफ उचित कदम नहीं उठाए थे। जिसकी वजह से उन्हें अन्य की तुलना में गलत फायदा हुआ था। बता दें, सेबी को बताया गया था कि 25 सितंबर को एनएसई और अन्य आरोपियों ने जुर्माने की राशि जमा कर दी है। इसके अलावा दोषियों (एनएसई और शेनॉय को छोड़कर) ने कम से कम 14 दिनों का फ्री पब्लिक सर्विस देने का वचन पत्र दिया है। IPO से पहले एनएसई के लिए यह अच्छी खबर मानी जा रही है।

क्या है पूरा मामला?

2008 में ट्रेडिंग एक्सेस प्वाइंट (TAP) नाम का एक साफ्टवेयर ट्रेडिंग सदस्यों के टेडिंग सिस्टम में इंस्टॉल किया गया था। दिसंबर 2013 में ‘trimmed TAP’ और फरवरी 2016 में ‘direct connect’ को ट्रेडिंग एक्सेस प्वाइंट के विकल्प के तौर पर लाया गया था। यह इक्विटी सेगमेंट में सितंबर 2019 तक TAP के साथ जारी रहा।

सेबी को 2013 में एक शिकायत मिली। जिसमें आरोप लगा था कि हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडर्स ने TAP सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ करके अनुचित लाभ कमाया है। इसमें जिसमें ट्रांजैक्शन फीस को दरकिनार करना और पता लगाए बिना आदेशों को पूरा करना शामिल था। एनएसई और उसके अधिकारियों पर आरोप लगा कि शिकायतों के बाद भी उन्होंने नियमों के तहत एनएसई स्टैंडिंग कमिटी आन टेक्नोलॉजी (SCOT) की जानकारी में यह मामला नहीं लाया।

2017 में स्कैम का चला पता

2017 में कोलोकेशन स्कैम की जांच के दौरान इस दुरुपयोग का पता चला। इस जांच के दायरे में एनएसई के पूर्व प्रमुख चित्रा रामकृष्ण और रवि नारायण भी थे। बता दें, तीन व्हिसलब्लोअर ने शिकायत थी कि कुछ ब्रोकर को फायदा पहुंचाने के लिए प्राथमिकता दी गई है। जिसकी वजह से अन्य ब्रोकर्स को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इसी शिकायत के बाद इस स्कैम की जानकारी बाहर आई।

आईपीओ लाने की तैयारी में एनएसई

एनएसई के लिए यह अच्छी खबर है। क्योंकि यह काफी बड़ा मामला था। इसका असर एनएसई के आईपीओ पर भी पड़ सकता है। आने वाले समय महीनों में एनएसई अपना आईपीओ लाएगा। बता दें, एनएसई आईपीओ की लिस्टिंग नियमानुसार बीएसई में होगी।

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