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शेयर मार्केट में गिरावट की संभावना कम, भारत FII के लिए व्यस्त बाजार: संदीप भाटिया

अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठक के नतीजे के बाद सभी की नजरें अब भारतीय रिजर्व बैंक की संभावित दर कटौती पर हैं। मैक्वेरी कैपिटल में इ​क्विटी इंडिया के प्रबंध निदेशक संदीप भाटिया ने पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में वै​श्विक शेयर बाजारों की आगामी राह पर चर्चा की। मुख्य अंश:

फेड की दर कटौती के बाद अगला बड़ा वै​श्विक घटनाक्रम अमेरिकी चुनाव परिणाम है। इसके लिए बाजार किस तरह तैयार हो रहे हैं?

अमेरिकी चुनाव बहुत ही कड़े मुकाबले में हैं। एक बार जो रिपब्लिकन के लिए आसान जीत लग रही थी, वह नए उम्मीदवार की घोषणा के साथ ही बदल गई। अल्पाव​धि में, दोनों उम्मीदवार कर नीतियों के बगैर खर्च में बड़ा इजाफा करने का वादा कर रहे हैं जिससे शुरू में वैश्विक अर्थव्यवस्था और अमेरिकी बाजारों को ताकत मिल सकती है। हालांकि, अमेरिका पिछले आठ वर्षों के दौरान मजबूत वृहद आ​र्थिक परिदृश्य के बावजूद करीब 6 प्र​तिशत के ऊंचे राजकोषीय घाटे से जूझ रहा है। दीर्घाव​धि में इन बढ़ते खर्च का अमेरिका और वै​श्विक वित्तीय बाजारों, दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

क्या भारतीय शेयर बाजार बड़ी गिरावट की राह पर बढ़ रहे हैं?

इसकी आशंका नहीं है कि बाजार में जल्द ही गिरावट आएगी। स्मॉल और मिडकैप शेयरों पर पिछले दबाव के दौरान घरेलू म्युचुअल फंड मजबूत खरीदार के तौर पर उभरे। यदि कोई गिरावट आती है तो एफआईआई और घरेलू निवेशक, दोनों के सक्रिय होने की संभावना है, जिससे जब तक कुछ अप्रत्याशित न हो जाए, लंबे समय तक मंदी की संभावना नजर नहीं आ रही है। मेरा मानना है कि भारत उन कुछ देशों में एक है जो अपना भाग्य खुद लिखने में सक्षम है, जैसे स्वायत्तता के संदर्भ में अमेरिका है।

यह भारत की सफलता पर भरोसा करने का समय क्यों है?

बड़ा बदलाव यह है कि भारत के प्रति वैश्विक धारणा बदली है। अब इसे एक उभरते सितारे के रूप में देखा जा रहा है, जो बढ़ती अंतरराष्ट्रीय साख को दर्शाता है। अन्य बदलाव खासकर शेयर बाजारों के संदर्भ में बाहरी झटकों को लेकर भारत का बढ़ता आत्मविश्वास और क्षमता है। भारत की अर्थव्यवस्था मौजूदा भूराजनीतिक उथल-पुथल के बीच मजबूत बनी हुई है। इस मजबूती का एक प्रमुख कारक भारत की घरेलू बचत का वित्तीय परिसंपत्तियों में बढ़ता निवेश है।

1990 के दशक के उतरार्ध के बाद से भारत की बड़ी बचत पूरी तरह शेयर बाजार में निवेश नहीं आई थी। ऊंची रिटेल भागीदारी की धारणा के बावजूद वास्तविक आंकड़े मामूली बने हैं। जिससे बाजार को उस समय बाहरी झटकों से बचाने में मदद मिल रही है, जब भारत के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण में सुधार हो रहा है।

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