अमेरिका के मंदी में जाने की आशंका जताई गई है। सवाल है कि क्या वाकई अमेरिकी इकोनॉमी की स्थिति अच्छी नहीं है? क्या यह मंदी की तरफ बढ़ रही है? यह सवाल निवेशक सबसे ज्यादा पूछ रहे हैं। पिछले हफ्ते अमेरिकी स्टॉक मार्केट्स में बड़ी गिरावट आई थी। अब मार्केट्स में रौनक लौट आई है। इसके बावजूद इकोनॉमी के मंदी में जाने को लेकर चर्चा खत्म नहीं हुई है। हाल में इकोनॉमिक डेटा से स्पष्ट संकेत नहीं मिले हैं। कुछ दूसरे इंडिकेटर्स भी इस मामले में स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं। इनमें पहला सैम रूल है।
सैम रूल मंदी के संकेत दे रहे
इकोनॉमिस्ट क्लाउडिया सैम ने इस रूल की शुरुआत की थी। इसके मुताबिक, पिछले 12 महीनों में बेरोजगारी के सबसे कम डेटा के मुकाबले तीन महीने के बेरोजगारी के औसत डेटा में अगर 0.5 पर्सेंटेज प्वाइंट्स से ज्यादा की वृद्धि होती है तो इसे रिसेशन का संकेत माना जाता है। इसके मुताबिक, जुलाई में अमेरिका में बेरोजगारी के डेटा मंदी का संकेत देते हैं।
यूबीएस के मुताबिक मंदी के संकेत नहीं
इस वक्त दूसरे डेटा के आधार पर अमेरिकी इकोनॉमी में रिसेशन के संकेतों पर गौर करना जरूरी है। इस बारे में निवेशकों की चिंता को देखते हुए एनालिस्ट्स दूसरे डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं। UBS ने रोजगार और आबादी के अनुपात के आधार पर एक रिपोर्ट जारी की है। इसके नतीजों को मानें तो अमेरिकी इकोनॉमी मंदी में नहीं जा रही है। 11 अगस्त को यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के पैस्कल मिशैलेट सहित कुछ इकोनॉमिस्ट्स ने मिशेज रूल के आधार पर कुछ नतीजें पेश किए।
दूसरे संकेतों से नहीं हो रही पुष्टि
मिशेज रूल कुछ मायनों में सैम रूल से अलग है। लेकिन, इसके इंडिकेटर्स भी सैम रूल की तरह हैं। इसमें बताया गया है कि मार्च में अमेरिकी इकोनॉमी मंदी में थी। इस तरह से दोनों ही रूल अमेरिका के मंदी में होने के संकेत दे रहे हैं। लेकिन, कुछ जानकारों का कहना है कि इस बार हालात अलग हैं। उदाहरण के लिए येल यूनिवर्सिटी के एर्नी टेडेसी का कहना है कि इस साल जनवरी और जून के दौरान बेरोजगारी बढ़ने की दूसरी वजहें थीं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अमेरिकी इकोनॉमी के बारे में पक्के तौर पर कुछ कहना मुश्किल है। अभी इकोनॉमी से जुड़े इंडिकेटर्स की दिशा एक नहीं है।