Share Market Rally: क्या आपको पता है कि शेयर बाजार को कौन ऊपर ले जा रहा है? आखिर भारतीय स्टॉक्स के आसमान छूते वैल्यूएशन के पीछे की असली वजह क्या है? वे कौन से ऐसे कारण है, जो हर गिरावट के बाद कुछ ही समय में बाजार को वापस ऊपर की खींच लेते हैं? अगर नहीं, तो फिर आइए जानते हैं। भारतीय स्टॉक्स का ऊंचा वैल्यूएशन पिछले कुछ समय से मार्केट एक्सपर्ट्स के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। उन्हें सस्ते भाव पर पैसा लगाने के लिए कोई स्टॉक नहीं मिल रहे हैं। हालांकि इसके बावजूद जो नॉन-इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स हैं, उनका भरोसा बाजार में बना हुआ है।
शेयर बाजार की भाषा में नॉन-इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स उन्हें कहते हैं, जिन्होंने 2 लाख से ज्यादा स्टॉक में लगाए होते हैं। ब्रोकरेज फर्म मैक्वरी का कहना है कि यही नॉन-इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स पिछले कुछ समय से शेयर बाजार की रीढ़ बने हुए हैं, जो इसे ऊपर ले जा रहे हैं। मैक्वेरी ने इसे लेकर एक पूरी रिपोर्ट निकाली है। ब्रोकरेज ने कहा कि ये निवेशक अब अपनी घरेलू सेविंग्स को बैंकों या एफडी में नहीं जमा करके स्टॉक मार्केट में लगा रहे हैं, जिससे ऊंचे वैल्यूएशन के बावजूद मार्केट को अपनी रैली जारी रखने में मदद मिल रही है।
मैक्वेरी ने कहा कि भारतीय इकोनॉमी की ग्रोथ रेट काफी उम्मीद जगाने वाली है, लेकिन हाल के सालों कई सेगमेंट में थकान के संकेत दिखे हैं। इसके चलते भारत की अनुमानित अर्निंग ग्रोथ का प्रीमियम लगभग जीरो पर आ गया है। इस थकान की पुष्टि इस बात से भी होती है कि पिछले 3 सालों में भारतीय स्टॉक में विदेशी निवेशकों की ओर से कुछ खास फंड नहीं आया है, जबकि इस दौरान स्टॉक मार्केट ने कई बार ऊंचाई का अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा। यह तेजी साफ तौर पर घरेलू सेविंग्स के फाइनेंशियलाइजेशन के चलते आई। यानी ये सेविंग्स प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से बैंक में न जाकर स्टॉक मार्केट में आई हैं।
इस पूरे खेल में म्यूचुअल फंड्स की भूमिका भी काफी अहम रही है। उन्होंने कई नए ‘थीमैटिक’ फंड लॉन्च किए हैं, जिनमें नॉन-इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स का जबरदस्त रुझान देखा जा रहा है। वहीं, बाजार की मजबूत परफॉरमेंस ने प्रमोटर्स, मल्टीनेशनल कंपनियों और प्राइवेट मार्केट इनवेस्टर्स को भी मुनाफा कमाने का मौका दिया है।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की भी कुछ ऐसी ही राय है। ब्रोकरेज ने कहा कि बाजार में इस समय घरेलू निवेशकों के जोश, भारतीय इकोनॉमी के फंडामेंटल में उनके विश्वास और कंपनी की सॉलिड अर्निंग के प्रति उनके भरोसे का बेहतरीन मेल देखने को मिल रहा है। नॉन-इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स इस समय बाजार को ऊपर ले जाने वाले सबसे बड़े ड्राइवर हैं, जिन्होंने कमाई और वैल्यूएशन के बीच के अंतर को मिटा दिया है।
कोटक ने कहा कि नॉन-इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स के बीच इतना उत्साहस देखा जा रहे है कि अब फंडामेंटल वजहें भी पीछे छूट गई है। इसके चलते बाजार के कई हिस्सों में प्राइस और वैल्यू के बीच अंतर पैदा हो गया है और बाकी सेक्टर्स में वैल्यूएशन काफी बढ़ गए हैं।
मैक्वेरी का कहना है कि अगर फाइनेंशियलाइजेशन की दर यानी की घरेलू सेविंग्स के स्टॉक मार्केट में आने की दर अगले पांच सालों में सिर्फ 5 प्रतिशत बढ़ जाती है, तो स्टॉक मार्केट में इनका आने वाला निवेश 3.5-4 गुना तक बढ़ ला सकता है। यानी, भारतीय स्टॉक्स को लंबे समय तक ऊंचा वैल्यूएशन मिलना जारी रह सकता है। ऐसे में अगर आप बाजार में गिरावट आने की उम्मीद कर रहे हैं, तो आपके हाथ मायूसी लग सकती है
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