सेबी ने निप्पॉन लाइफ इंडिया एसेट मैनेजमेंट पर 2 लाख रुपये और निप्पॉन लाइफ इंडिया ट्रस्टी लिमिटेड पर 1 लाख रुपये की पेनाल्टी लगाई है। दोनों पर कई स्कीमों के टोटल एक्सपेंस रेशियो (टीईआर) का पेमेंट एसेट मैनेजमेंट कंपनी के बुक्स से करने का आरोप है। सेबी इसकी इजाजत नहीं देता है। सेबी के नियम छोटी और बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनियों पर समान तरह से लागू होते हैं। सेबी ने 8 अगस्त के अपने आदेश में कहा है कि निप्पॉन लाइफ इंडिया एसेट मैनेजमेंट ने अपनी कुछ स्कीमों पर ज्यादा खर्च किए। निप्पॉन लाइफ इंडिया ट्रस्टी यह सुनिश्चित करने में नाकाम रहा कि एएमसी की तरफ से नियमों का उल्लंघन नहीं किया जाए।
निप्पॉन लाइफ ने सेबी के सर्कुलर का उल्लंघन किया था
सेबी ने 22 अक्टूबर, 2028 को एक सर्कुलर जारी किया था। इसमें कहा गया था कि स्कीम से जुड़े सभी खर्च का पेमेंट स्कीम से होना चाहिए। यह तय सीमा से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इसका पेमेंट एसेट मैनेजमेंट कंपनी की बुक्स, उसके एसोसिएट, स्पॉन्सर, ट्रस्टी या किसी दूसरी एनटिटी की तरफ से नहीं किया जाना चाहिए। सेबी ने इस मामले की जांच की। इसमें यह पाया गया कि निप्पॉन लाइफ इंडिया एसेट मैनेजमेंट कंपनी के पांच ईटीएफ में स्कीम से 1 फीसदी से कम खर्च का पेमेंट किया गया था। स्कीम के कुछ खास खर्चों का पेमेंट एएमसी की बुक्स से किया गया था।
स्कीम के खर्च का पेमेंट सिर्फ स्कीम से किया जा सकता है
सेबी ने जांच में पाया कि निप्पॉन लाइफ इंडिया एएमसी ने अक्टूबर 2018 में जारी उसके सर्कुलर का उल्लंघन किया है। एएमसी को ‘बहुत छोटी वैल्यू लेकिन ज्यादा वॉल्यूम’ वाले खर्च का पेमेंट अपनी बुक्स से करने की इजाजत है। इसके लिए संबंधित स्कीम के एयूएम का अधिकतम 2 फीसदी की सीमा तय की गई है। लेकिन, निप्पॉन के मामले में FY21 और FY22 तय सीमा से ज्यादा का पेमेंट एएमसी की बुक्स से किया गया था। इस बारे में एएमसी और उसके ट्रस्टी ने कहा कि जिन स्कीम से यह मामला जुड़ा है वे ईटीएफ और एफओएफ हैं। ये मुख्य रूप से डायरेक्ट प्लान आधारित स्कीम हैं। इसके जवाब में सेबी ने कहा कि अक्टूबर में जारी किया गया उसका सर्कुलर सभी तरह की स्कीमों पर लागू होता है। इस मामले में कोई स्कीम अपवाद नहीं है।
बड़ी और छोटी एएमसी के लिए सेबी के एक जैसे नियम
सेबी के आदेश में कहा गया है कि अगर अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है तो इससे म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में सभी के लिए एक जैसे नियम नहीं रह जाएंगे। बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनियां स्कीम के खर्च का पेमेंट अपनी बुक्स से करना शुरू कर देंगी। उधर, छोटी एएमसी को अपनी बुक्स से इस तरह के खर्चों का पेमेंट करना मुमकिन नहीं होगा। उसने यह भी कहा कि टीईआर से जुड़े सर्कुलर का मकसद खर्च के मामले में पारदर्शिता लाना है। पोर्टफोलियो में बार-बार बदलाव पर अंकुश लगाना है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि अलग-अलग कंपनियों की तरफ से अलग-अलग नियमों का पालन नहीं किया जाए। इसलिए इस मामले में एएमएसी और उसके ट्रस्टी की तरफ दिए गए जवाब को स्वीकार नहीं किया जा सकता।