साल 2024 बॉन्ड मार्केट के लिए शानदार रहा है। लंबे इंतजार के बाद ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में इंडियन गवर्नमेंट के बॉन्ड्स को शामिल किया गया। इसके अलावा सरकार ने फिस्कल कंसॉलिडेशन को ध्यान में रख ‘लॉन्ग बॉन्ड’ पेश किया। इसका ऐलान सरकार ने अंतरिम बजट में किया था। इस साल इंडियन गवर्नमेंट के 10 साल के बॉन्ड की कीमतों में मजबूती दिखी है। इसके चलते यील्ड 12 जुलाई, 2024 को गिरकर 7 फीसदी से नीचे 6.98 फीसदी पर आ गई। यह इस साल 1 जनवरी को 7.19 फीसदी थी। अब बॉन्ड बाजार की नजरें वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के यूनियन बजट पर लगी हैं। वह 23 जुलाई को बजट पेश करेंगी।
कर्ज लेने का टारगेट घटा सकती है सरकार
सवाल है कि सरकार का फोकस बजट में कंजम्प्शन बढ़ाने पर होगा या फिस्कल कंसॉलिडेशन पर होगा? RBI से मिले बंपर डिविडेंड से सरकार का हौसला बुलंद है। वह खर्च बढ़ाने के साथ अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाने की कोशिश कर सकती है। ऐसे में इस बात की ज्यादा संभावना है कि 23 जुलाई को पेश होने वाले यूनियन बजट में सरकार FY25 की दूसरी छमाही में मार्केट से कर्ज लेने के अपने टारगेट को घटा सकती है। ऐसा होने पर सरकार के ‘लॉन्ग बॉन्ड’ को पंख लग सकते हैं।
अंतरिम बजट में फिस्कल डेफिसिट का 5.1% टारगेट
इस साल 1 फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट पेश किया था। इसमें FY25 में फिस्कल डेफिसिट का 5.1 फीसदी का टारगेट तय किया था। सरकार फाइनेंशियल ईयर 2025-26 तक फिस्कल डेफिसिट घटाकर 4.5 फीसदी तक लाना चाहती है। हालांकि, सरकार ने FY25 में पूंजीगत खर्च के अपने टारगेट को बढ़ाकर 11.11 लाख करोड़ रुपये कर दिया था। यह जीडीपी का करीब 3.4 फीसदी है।
ग्रॉस बॉरोइंग के लिए 14 लाख करोड़ रुपये का टारगेट
सरकार ने FY25 में ग्रॉस बॉरोइंग (कुल कर्ज) के लिए अंतरिम बजट में 14.13 लाख करोड़ रुपये का अनुमान बताया था। यह FY24 के 15.4 करोड़ रुपये के अनुमान से कम है। सरकार की नेट बॉरोइंग 11.75 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया गया था, जो पिछले वित्त वर्ष के अनुमान के करीब बराबर था। लेकिन, लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद राजनीतिक परिदृश्य बदला है। ऐसे में सरकार की फिस्कल पॉलिसी में कुछ बदलाव दिख सकता है।
फिस्कल कंसॉलिडेशन पर फोकस के साथ खर्च बढ़ा सकती है सरकार
सरकार फिस्कल कंसॉलिडेशन पर अपना फोकस बनाए रख सकती है। खासकर ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में सरकार के बॉन्ड के शामिल होने के बाद इसकी ज्यादा संभावना दिखती है। इसकी वजह यह है कि अब इंडियन बॉन्ड मार्केट्स में विदेशी निवेशकों का निवेश बढ़ेगा। इससे सरकार की फिस्कल पॉलिसी पर भी उनकी करीबी नजरें रहेंगी। इस बीच, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को राहत देने के लिए बजट में कुछ उपाय दिख सकते हैं। खासकर सरकार ग्रामीण इलाकों के लोगों को राहत देना चाहती है।
ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में सरकारी बॉन्ड के शामिल होने से बॉन्ड की चमक बढ़ी है
अगर सरकार यूनियन बजट में बाजार से कर्ज लेने के अपने टारगेट में कमी करती है तो इसका मतलब है मार्केट में सरकारी बॉन्ड्स की सप्लाई घटेगी। बॉन्ड मार्केट इसका स्वागत करेगा। उधर, सरकारी बॉन्ड के ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स में शामिल होने से इंडियन गवर्नमेंट बॉन्ड्स की मांग बढ़ी है। इससे बॉन्ड यील्ड पर दबाव दिखेगा। उधर, इस साल अमेरिका में इंटरेस्ट रेट में कमी की उम्मीद जताई जा रही है। ऐसा होने पर आरबीआई भी इंटरेस्ट रेट में कमी कर सकता है। इसका असर भी बॉन्ड मार्केट पर पड़ेगा।