इंडिया की ग्रोथ मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के विस्तार से जुड़ी हुई है। आत्मनिर्भरता का लक्ष्य भी मैन्युफैक्चरिंग की ग्रोथ पर निर्भर है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल से निर्यात बढ़ाने के उपाय करने होंगे। इनोवेशन पर फोकस करना होगा और निवेश बढ़ाना होगा। पीएलआई जैसी स्कीम से कुछ सेक्टर को प्रोत्साहन देंगे। साथ ही समर्थ उद्योग भारत 4.0 से उत्पादनों की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ानी होगी। मैन्युफैक्चरिंग की गोथ के साथ विलय और अधिग्रहण के मामले बढ़े हैं। आईपीओ मार्केट गुलजार है। प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल निवेश बढ़ा है। इससे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अगले ढाई दशक तक इंडिया की ग्रोथ का इंजन बना रह सकता है।
दुनियाभर में कंपनियां जियोपॉलिटकल स्थितियों में आए बदलाव को देखते हुए सप्लाई चेन से जुड़ी अपनी स्ट्रेटेजी में बदलाव पर विचार कर रही है। सिंगल मार्केट पर निर्भरता से जुड़े रिस्क को घटाना जरूरी है। इधर, इंडिया अपने डेमोग्राफिक डिविडेंड, स्ट्रेटेजिक ज्योग्राफिक लोकेशन और बेहतर हो रहे इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ इनवेस्टमेंट डेसिटनेशन के विकल्प के रूप में उभर रहा है।
मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार नई घरेलू कंपनियों के लिए 15 फीसदी कॉर्पोरेट टैक्स का ऐलान किया था। इसका फायदा 31, 2024 तक मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने वाली कंपनियां उठा सकती थीं। इस रियायती टैक्स रेट का फायदा सभी नई मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए अनिश्चित समय तक बढ़ाने की जरूरत है।
15 फीसदी कॉर्पोरेट रेट से इंडिया एशिया के दूसरे दक्षिणपूर्वी देशों के मुकाबले में आ जाएगा। यह सिर्फ टैक्स में छूट नहीं है बल्कि यह मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ाने के लिए एक तरह का प्रोत्साहन है। इससे कैपिटल इनफ्लो बढ़ने के साथ युवाओं के लिए रोजगार के मौके बढ़ेंगे। इससे उद्यमशिलता को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्टार्टअप्स और एमएसएमई सेक्टर की ग्रोथ तेज होगी। हाल में आईपीओ मार्केट में जिस तरह से गतिविधियां बढ़ी हैं और मैन्युफैक्चरिंग की वैल्यूएशन में इजाफा हुआ है, उससे इंडिया में निवेशकों के भरोसे का पता चलता है।