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Patanjali Foods पर क्या लगाया जा सकता है दांव? ₹1,100 करोड़ में कंपनी कर रही 2 नए बिजनेस का अधिग्रहण

Patanjali Foods Shares: पतंजलि फूड्स का एक बार फिर से नाम बदलने की संभावना है। पहले इस कंपनी को रुचि सोया इंडस्ट्रीज के नाम से जाना जाता था। हालांकि बाबा रामदेव की अगुआई वाली पतंजलि आयुर्वेद ने NCLT प्रक्रिया के जरिए अधिग्रहण के बाद इसका नाम बदलकर ‘पतंजलि फूड्स’ कर दिया। अधिग्रहण के बाद, पतंजलि फूड्स ने नकद और रॉयल्टी भुगतान के जरिए पतंजलि आयुर्वेद के कुछ फूड बिजनेस का अधिग्रहण किया। इसमें बिस्कुट, घी, अनाज और न्यूट्रास्युटिकल्स आदि शामिल थे। अब कंपनी ऐसे ही एक कदम के तहत पतंजलि आयुर्वेद के होम और पर्सनल केयर बिजनेस का अधिग्रहण करने जा रही है। ऐसे में अब शायद कंपनी को एक बार फिर से नाम बदलने की जरूरत पड़ सकती है, जिससे ग्राहकों को यह साफ किया जा सके कि वह फूड बिजनेस के अलावा दूसरे FMCG सेगमेंट में भी कारोबार करती है।

हालांकि, निवेशकों के सामने मुख्य सवाल यह है कि उन्हें इस अधिग्रहण से क्या लाभ हो सकता है और क्या कंपनी आगे ऐसे और रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन करती रहेगी। पतंजलि फूड्स जिस होम और पर्सनल केयर बिजनेस का अधिग्रहण करने जा रही है, उसका वित्त वर्ष 2024 में रेवेन्यू 2,771 करोड़ रुपये था। वहीं इसका ग्रॉस मार्जिन 48 प्रतिशत और EBITDA मार्जिन 18 प्रतिशत था। पतंजलि फूड्स इस बिजनेस को 1100 करोड़ रुपये में खरीदेगी।

यह आंकड़ा पतंजलि फूड्स के मौजूदा फूड और FMCG सेगमेंट से अच्छा है, जिसका EBIT मार्जिन 12.8 प्रतिशत है। हालांकि कंपनी अधिग्रहण के बाद अगले 20 साल तक पतंजलि आयुर्वेद को 3 फीसदी की रॉयल्टी देगी। अगर इसे शामिल करें तो EBITDA मार्जिन कुछ कम हो जाएगा। आसान कैलकुलेशन के लिए यह मान लेते हैं EBITDA मार्जिन पहले के 18 प्रतिशत से 3 फीसदी घटकर 15 प्रतिशत पर आ जाएगा।

हालांकि यहां डील की सबसे आकर्षक बात यह है कि पंतजलि फूड्स सिर्फ बिक्री का 0.4 प्रतिशत भुगतान कर यह अधिग्रहण कर रही है। आमतौर पर FMCG कंपनियों का वैल्यूएशन उनके बिक्री के 5 से 8 गुना पर होता है। इसलिए यहां रॉयल्टी की शर्त शामिल है, जिससे यह सुनिश्चत किया जा सके कि प्रमोटरों को आने वाले सालों में एक बढ़ती हुई राशि मिलती रही और अभी के कम वैल्यूएशन की भरपाई की हो सके। रॉयल्टी की मात्रा से शेयरधारक निराश हो सकते हैं, लेकिन इससे जुड़ी कई अच्छी बातें भी हैं।

पहली बात यह है कि प्रमोटर बिक्री की रफ्तार तेज करना चाहते हैं, जिससे अन्य शेयरधारकों को भी लाभ होगा। रॉयल्टी का भुगतान भी तभी बढ़ेगा, जब बिक्री बढ़ेगी। दूसरा यह है कि इस अधिग्रहण के बाद प्रमोटर की निजी स्वामित्व वाली कंपनी और शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनी के बीच हितों के टकराव को काफी हद तक समाप्त हो जाएगा। प्रमोटर की निजी कंपनी के पास अब बस आयुर्वेदिक दवाइयां, पूजा और कुछ कमोडिटी डेयरी बिजनेस ही बचेगा।

इस अधिग्रहण के बाद पतंजलि फूड्स में ओरल केयर (होम एंड पर्सनल केयर सेगमेंट की बिक्री का 49 प्रतिशत), स्किन केयर (26 प्रतिशत), हेयर केयर (11 प्रतिशत) और होम केयर (15 प्रतिशत) कारोबार शामिल हो जाएंगे। ओरल केयर में दंत कांति सबसे बड़ा ब्रांड है और फिर साबुन, शैम्पू, फेस वॉश और डिश वॉश जैसी कैटेगरीज में कई अन्य ब्रांड भी हैं।

पतंजलि फूड्स ने इससे पहले किए छोटे अधिग्रहणों को तेजी से बढ़ाने की क्षमता दिखाई है। इसके चलते इसके टर्नओवर में FMCG/फूड बिजनेस का योगदान बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 30 प्रतिशत पर पहुंच गया, जो इससे पहले वित्त वर्ष 2023 में 19.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022 में 6.8 प्रतिशत था। होम एंड पर्सनल केयर बिजनेस को जोड़ने का मतलब होगा कि FMCG सेगमेंट की कुल बिक्री में हिस्सेदारी 38 प्रतिशत हो जाएगी और बाकी हिस्सा एडिबल ऑयल से आएगा।

पंतजलि फूड्स के पास अधिग्रहण से लाभ उठाने के लिए मुख्य रणनीति तो यही होनी चाहिए कि वह होम एंड पर्सनल केयर बिजनेस की बिक्री बढ़ाए। लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा। इस सेगमेंट की सेल्स ग्रोछ पिछले 3 सालों में बस 6.4 फीसदी रही है। इसके पीछे एक कारण तो यह है कि FMCG मार्केट में सुस्ती छाई है। मांग कमजोर है, खासकर मिडिल और लोअर मिडिल इनकम क्लास में। इसके अलावा FMCG मार्केट में बढ़ता कॉम्पिटीशन भी एक कारण हो सकता है।

हालांकि भविष्य में FMCG मार्केट की ग्रोथ बढ़ने का अनुमान जताया जा रहा है। यह भी अटकलें हैं सरकार खपत को बढ़ावा देने के लिए बजट 2024-24 में मिडिल और लोअर मिडिल इनकम क्लास को कई तरह के राहत दे सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो पतंजलि फूड्स को भी फायदा होगा और इसकी ग्रोथ बढ़ती हुई दिख सकती है। यह ग्रोथ कितनी होगी, फिलहाल तो यह भविष्य में छुआ हुआ है।

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