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CONCOR में 5-7% हिस्सेदारी बेच सकती है भारत सरकार, निजीकरण पर अभी तक रहा है ठंडा रिस्पॉन्स

कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CONCOR) में भारत सरकार 5 से 7 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही है। इस मामले से वाकिफ सूत्रों ने मनीकंट्रोल को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि रणनीतिक बिक्री के जरिए कंपनी के निजीकरण की योजना पर अभी तक लोगों ने कम दिलचस्पी दिखाई है। ऐसे में अब सरकार कंपनी में कुछ हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही है। सरकार हिस्सेदारी बिक्री के लिए क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP) या ऑफर-फॉर-सेल (OFS) जैसे विकल्पों पर विचार कर रही है।

कई सरकारी अधिकारियों ने मनीकंट्रोल को बताया कि केंद्र सरकार ने संभावित खरीदार नहीं मिलने के बाद CONCOR के विनिवेश को अनिश्चित काल के लिए रोकने का फैसला किया है।

उन्होंने कहा कि कंपनी अपनी लैंड लीजिंग फीस को कम नहीं करना चाहती है और दूसरी ओर रेल मंत्रालय से सपोर्ट की कमी रही है, जो संभावित खरीदारी को इसके लिए बोली लगाने के लिए शायद रोक रहा है। सरकार के पास इस कंपनी में अभी करीब 54.8 फीसदी हिस्सेदारी है और वह इसमें से 30.8 फीसदी हिस्सेदारी बेचना चाहती है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने मनीकंट्रोल को बताया, “कॉनकॉर की रणनीति बिक्री की योजना ठंडे बस्ते में है। कॉनकॉर की बिक्री की दिशा में कोई काम नहीं चल रहा है।”अधिकारी ने कहा, “अगर सरकार वाकई इसे आगे बढ़ाना चाहती है, तो इसके लिए शीर्ष स्तर से हरी झंडी मिलनी चाहिए, सरकार को इसकी रणनीतिक बिक्री के लिए अनौपचारिक मंजूरी देनी चाहिए, तभी इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। अब कम से कम इस वित्त वर्ष में इसकी रणनीतिक बिक्री की संभावना नहीं है।”

नवंबर 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मैनेजमेंट कंट्रोल के ट्रांसफर के साथ 30.8 प्रतिशत हिस्सेदारी (सरकार की 54.80 प्रतिशत इक्विटी में से) की रणनीतिक बिक्री को मंजूरी दी थी। इस बिक्री के बाद सरकार के पास कंपनी में 24 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी, लेकिन बिना किसी वीटो पावर के। हालांकि तबसे यह योजना कुछ खास आने नहीं बढ़ी है।

एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “कॉनकॉर की रणनीतिक बिक्री लंबे समय से अटकी हुई है। पहले रेल मंत्रालय को इसकी रणनीतिक बिक्री को लेकर कुछ दिक्कतें थीं। लैंड लीड की पॉलिसी इसीलिए पास की गई थी ताकि CONCOR की रणनीतिक बिक्री को रास्ता साफ हो सके। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब गठबंधन सरकार बनने से भी रणनीतिक बिक्री के फैसलों पर असर पड़ सकता है क्योंकि ट्रेड यूनियनें हमेशा इसके खिलाफ रहती हैं।”

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