India leads in M-cap gains: मार्केट कैप के मामले में भारत दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा देश है। हालांकि जून तिमाही की बात करें तो डॉलर के टर्म में मार्केट कैप बढ़ने के मामले में भारत सबसे आगे रहा। भारतीय कंपनियों का मार्केट कैप जून तिमाही में 13.8 फीसदी बढ़ा। यह उछाल दुनिया के सबसे बड़े मार्केट कैप वाले देशों में सबसे अधिक रही। न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक यह लगातार पांचवी तिमाही रही, जब भारतीय कंपनियों के मार्केट कैप में बढ़ोतरी हुई। फिलहाल यह 5.03 ट्रिलियन डॉलर (419.78 लाख करोड़ रुपये) पर है। इसकी तुलना अगर दुनिया के सबसे बड़े इक्विटी मार्केट अमेरिका से करें तो जून तिमाही में यह 2.75 फीसदी बढ़ा। इसकी मार्केट वैल्यू फिलहाल 56.84 ट्रिलियन डॉलर (4743.52 लाख करोड़ रुपये) है।
बाकी देशों की क्या है स्थिति?
दुनिया के दूसरे सबसे बड़े इक्विटी मार्केट चीन की बात करें तो जून तिमाही में इसका मार्केट कैप 5.6 फीसदी गिरकर 8.6 ट्रिलियन डॉलर रह गया। चीन के मार्केट कैप में लगातार पांचवी तिमाही गिरावट रही। जापान की बात करें तो इसका भी मार्केट कैप जून तिमाही में 6.24 फीसदी गिरकर 6.31 ट्रिलियन डॉलर रह गया। 5.15 ट्रिलियन डॉलर के मार्केट कैप वाले हॉन्ग कॉन्ग का मार्केट कैप इस दौरान 7.3 फीसदी बढ़ा। यूनाइटेड किंगडम का मार्केट कैप 3.3 फीसदी बढ़ा जबकि फ्रांस का मार्केट कैप 7.63 फीसदी, कनाडा का मार्केट कैप 2.7 फीसदी और सऊदी अरब का मार्केट कैप 8.7 फीसदी गिर गया। भारत के बाद सबसे अधिक मार्केट कैप ताइवान का बढ़ा और इसमें 11 फीसदी का विस्तार हुआ।
क्यों आई तेजी और आगे क्या है रुझान?
घरेलू और विदेशी निवेशकों के ताबड़तोड़ निवेश के चलते पिछले साल 2023 में भारत का मार्केट कैप 26.17 फीसदी बढ़ा था। अब जून तिमाही में यह 13.8 फीसदी बढ़ा है। मार्केट एक्सपर्ट अजय बग्गा का कहना है कि मैक्रोइकनॉमिक विस्तार से भारतीय मार्केट को सपोर्ट मिल रहा है। बैंकों ने फंसे कर्ज के मुद्दे को सुलझा लिया है और कॉरपोरेट लगातार अपना लेवरेज कम कर रहे हैं। इसके अलावा बाकी विकासशील देशों के करेंसी की तुलना में रुपये के आउटपरफॉरमेंस ने भी निवेशकों का सेंटिमेंट बढ़ाया। अब आगे की बात करें तो एनालिस्ट्स का मानना है कि बजट और मानसून से मार्केट को सपोर्ट मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद भी पॉजिटिव माहौल तैयार कर रही है। अधिकतर एनालिस्ट्स का मानना है कि आगे भी भारतीय मार्केट चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया को पीछे छोड़ देगा।