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Front-Running Details: इनसाइडर ट्रेडिंग से कैसे अलग है फ्रंट-रनिंग? निवेशकों पर क्या होता है असर? समझें आसान भाषा में

All details about Front-Running: ₹93000 करोड़ का एसेट मैनेज करने वाली क्वांट म्यूचुअल फंड बाजार नियामक सेबी की निगाह में आ गई है। इस पर फ्रंट रनिंग का संदेह जताया जा रहा है। मनीकंट्रोल को जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक सेबी ने संदीप टंडन के क्वांट म्यूचुअल फंड के मुंबई और हैदराबाद में स्थित ऑफिसों में खोजबीन अभियान चलाया और जब्ती भी की है। म्यूचुअल फंड्स में फ्रंट रनिंग गैरकानूनी है। इसके तहत ब्रोकर या डीलर को आने वाले समय में किसी म्यूचुअल फंड ट्रांजैक्शन के बारे में पता रहता है और चूंकि उन्हें इसकी जानकारी पहले ही हो जाती है तो वे इसका फायदा उठाते हैं।

अब सवाल ये उठता है कि यह काम कैसे करता है, यह इनसाइडर ट्रेडिंग से अलग कैसे है और इसका आम निवेशकों पर क्या असर पड़ेगा? क्वांट म्यूचुअल फंड से जुड़ा मामला कितना बड़ा है और सेबी इस प्रकार के मामले से कैसे निपट रही है?

Front-Running काम कैसे करता है?

म्यूचुअल फंड डीलर्स जैसे मीडिएटर्स के जरिए शेयरों की बड़ी खरीदारी-बिक्री करते हैं। अब चूंकि इन इंटरमीडियरीज को पहले ही सौदे के बारे में पता चल जाता है तो वे इसका फायदा उठा सकते हैं। जब म्यूचुअल फंड जैसा कोई बड़ा इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर मार्केट में शेयरों की खरीदारी के लिए एंट्री करने वाला होता है तो उससे कुछ मिनट पहले ही इंटरमीडियरीज शेयरों को खरीद लेते हैं। जब म्यूचुअल फंड शेयर खरीदते हैं तो भाव तेजी से उछलते हैं और इंटरमीडियरीज शेयर बेचकर मुनाफा कमा लेते हैं। वहीं अगर म्यूचुअल फंड शेयर बेचने वाले होते हैं तो इंटरमीडियरीज उनके ऑर्डर से कुछ ही मिनट पहले खुद शॉर्ट सेल कर देते हैं। खास बात ये है कि इंटरमीडियरीज ये ट्रेड्स अपने खुद के अकाउंट्स से नहीं करते हैं बल्कि एसोसिएट्स के अकाउंट्स के जरिए करते हैं।

Insider Trading से कैसे है अलग?

फ्रंट-रनिंग और इनसाइडर ट्रेडिंग दोनों ही गैरकानूनी है। चूंकि दोनों में अंदरूनी जानकारी का इस्तेमाल कर मुनाफा कमाया जाता है तो एक तरह से दोनों एक ही जैसे लग रहे हैं लेकिन ऐसा है नहीं। दोनों की प्रकृति अलग है और जिस तरह से अंदरूनी जानकारियां का इस्तेमाल किया जाता है, वह भी अलग है। इनसाइड ट्रेडिंग में कंपनी के अर्निंग्स रिपोर्ट्स, विलय और अधिग्रहण, अहम कारोबारी डेवलपमेंट या और किसी कॉरपोरेट इवेंट के सार्वजनिक खुलासे की जानकारी से पहले अंदरूनी तौर पर पता चल जाता है और उसके हिसाब से शेयरों की खरीद-बिक्री की जाती है। जब इसका सार्वजनिक तौर पर खुलासा होता है तो शेयरों की चाल के हिसाब से मुनाफा कमाया जाता है। वहीं दूसरी तरफ फ्रंट-रनिंग में शेयरों की लेन-देन से जुड़ी जानकारी के हिसाब मुनाफा कमाया जाता है। ये दोनों ही गैरकानूनी हैं।

फ्रंट-रनिंग का निवेशकों पर कैसे पड़ता है असर?

फ्रंट-रनिंग का निवेशकों पर निगेटिव असर पड़ता है। जैसे कि जब इंटरमीडियरीज ऐसे ऑर्डर्स करते हैं तो इससे शेयरों की चाल जो होती है, उससे निवेशकों को घाटा होता है। जैसे कि अगर म्यूचुअल फंड बड़ी संख्या में कोई शेयर खरीदने वाला है तो इंटरमीडियरी उनकी खरीदारी से पहले बड़ी संख्या में खुद ढेर सारे शेयर खरीद लेते हैं। इससे म्यूचुअल फंडों को महंगे भाव पर शेयर मिलता है जिससे रिटर्न घटने की आशंका बन जाती है। इस प्रकार अगर म्यूचुअल फंडों की बिकवाली के समय भी कम भाव पर शेयर बेचना पड़ जाता है तो रिटर्न घट जाता है।

अब अगर म्यूचुअल फंड्स फ्रंट-रनिंग में शामिल होते हैं तो इससे उसे जुर्माना या प्रतिबंध की दिक्कतें झेलनी पड़ सकती हैं। इसके अलावा उसकी साख को भी झटका लग सकता है जिससे निवेशक कम पैसे डाल सकते हैं। इससे फंड हाउस की वित्तीय सेहत को झटका लग सकता है। इससे पहले फ्रंट-रनिंग के जो मामले सामने आए थे, उसके बाद म्यूचुअल फंड हाउसेज को निवेश में सुस्ती और स्कीमों के अंडरपरफॉरमेंस से जूझना पड़ा था।

SEBI कैसे डील करती है फ्रंट-रनिंग से जुड़े मामले?

फ्रंट-रनिंग केसेज में सेबी आमतौर पर डीलर्स, फंड मैनेजर्स और आउटसाउड ब्रोकर्स पर जुर्माना लगाता है। पिछले साल सेबी ने एक्सिस म्यूचुअल फंड फ्रंट-रनिंग केस में शामिल वीरेश जोशी समेत 21 लोगों को शेयरों की खरीद-बिक्री से प्रतिबंधित कर दिया था। इसके अलावा इन्होंने गलत तरीके से जो पैसे कमाए थे, उसे लेकर इन पर 30.55 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

फ्रंट-रनिंग के मामले बढ़ने लगे तो सेबी ने हाल ही में सभी डीलर्स और फंड मैनेजर्स को आपसी बातचीत के सभी रिकॉर्ड का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया। सेबी ने अप्रैल में फंड हाउसों या एसेट मैनेजमेंट कंपनीज (AMCs) को ऐसा मैकेनिज्म बनाने को कहा जिसमें फ्रंट-रनिंग जैसी मार्केट विरोधी गतिविधियों को पकड़ा जा सके। इस नए मैकेनिज्म के तहत फ्रंट-रनिंग, इनसाइडर ट्रेडिंग और संवेदनशील जानकारियों के गलत इस्तेमाल पर निगरानी को बढ़ा दिया गया। सेबी ने एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) को भी इस प्रकार के इंस्टीट्यूशनल मैकेनिज्म को लेकर विस्तृत मानक तैयार करने को कहा है।

Quant MF मामले से क्या होगा असर?

पिछले तीन साल में क्वांट म्यूचुअल फंड सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले टॉप म्यूचुअल फंड हाउसेज में शुमार रहा। इसका एयूएम जनवरी 2020 में 258 करोड़ रुपये से उछलकर जून 2024 में 90 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया। फ्रंट-रनिंग केस में सेबी की जांच को लेकर क्रीडेंस वेल्थ एडवाइजर्स एलएलपी के फाउंडर कीर्तन शाह का कहना है कि क्वांट म्यूचुअल फंड का लॉर्ज कैप में पर्याप्त निवेश है, यहां तक के इनके स्मॉल और मिडकैप फंड्स में भी। दोनों ही फंडों में लगभग 10-10 फीसदी निवेश सिर्फ रिलायंस में है। ऐसे में अगर निकासी की बात आए तो लिक्विडिटी की दिक्कत नहीं आएगी। कीर्तन के मुताबिक क्वांट का जिन मिड और स्मॉल शेयरों में निवेश है, उसमें कुछ समय के लिए बिकवाली का दबाव दिख सकता है और फंड्स का परफॉरमेंस कुछ सुस्त भी रह सकता है।

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