वोडाफोन ग्रुप (Vodafone Group) ने एक दिन पहले 19 जून को इंडस टावर्स (Indus Towers) में अपनी करीब 18 फीसदी हिस्सेदारी बेच दी। इस बिक्री के पीछे मुख्य वजह 5 साल पहले लिए गए एक लोन को बताया जा रहा है, जिसके भुगतान के लिए लेंडर्स लगातार वोडाफोन ग्रुप पर दबाव डाल रहे थे। वोडाफोन ग्रुप और उसके लेंडर के बीच हुए बाततीच से वाकिफ एक सूत्र ने बताया कि यह मामला तब और बिगड़ गया, जब BNP परिबास, HSBC और बैंक ऑफ अमेरिका वाले विदेशी बैंकों के एक समूह ने लोन की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया और लोन की पूरी अदायगी की मांग की।
कंपनी ने यह लोन वोडाफोन आइडिया के राइट्स इश्यू में भाग लेने के लिए वोडाफोन PLC की इंडस टावर्स में 21.05% हिस्सेदारी को गिरवी रखकर लिया था। वोडाफोन ने बुधवार 19 जून को बताया कि उसने इंडस टावर्स में 18% हिस्सेदारी को 1.7 पाउंड (लगभग 15,300 करोड़ रुपये) में बेच दी है।
कंपनी ने कहा कि वह इस राशि के एक बड़े हिस्सा इस्तेमाल भारत में वोडाफोन की संपत्तियों को गिरवी रखकर लिए गए करीब 1.8 अरब पाउंड के लोन को चुकाने में करेगी। वोडाफोन ग्रुप पीएलसी न ब्लॉक डील के जरिए इंडस टावर्स में 48.47 लाख शेयर बेचे थे, जो इंडस की करीब 18 फीसदी हिस्सेदारी है।
स्टॉक एक्सचेंजों से मिले आंकड़ों के मुताबिक, नॉर्जेस बैंक, जेन स्ट्रीट, एसबीआई म्यूचुअल फंड और मिलेनियम फंड्स सहित कई घरेलू और विदेशी संस्थागत निवेशकों ने वोडाफोन पीएलसी से इंडस टावर्स के शेयर खरीदे। भारती एयरटेल (Bharti Airtel) ने भी इंडस टावर्स के लगभग 2.69 करोड़ शेयर खरीदे, जो इसकी 1% हिस्सेदारी के बराबर है। इस तरह भारतीय एयरटेल की इंडस टावर्स में अब हिस्सेदारी पहले के 47.95% से बढ़कर 48.95% हो गई है।
एक सूत्र ने बताया, “वोडाफोन रीपमेंट की समयसीमा बढ़ाने के लिए लेंडर्स के साथ बातचीत कर रहा है। इसके साथ ही, यह लोन को आंशिक या पूर्ण रूप से रिफाइनेंस करने का भी प्रयास कर रहा था, लेकिन सफल नहीं हुआ।” उन्होंने कहा, “अंत में इसके पास इकलौती विकल्प हिस्सेदारी बेचना बचा था। हालांकि अगर कंपनी ने कुछ और समय इंतजार किया होता तो उसे इस डील से कहीं बेहतर वैल्यू मिल सकता था। व्यक्ति ने आगे बताया कि हालांकि लेंडर्स ने रीपेमेंट में और देरी होने की स्थिति में ‘लोन वापस मांगने’ की तैयारी शुरू कर दी थी।