Yes Bank Saga: एक वक्त था जब भारत के बैंकिंग सेक्टर में यस बैंक (Yes Bank) का नाम ऊंचाइयों पर हुआ करता था। शेयर की कीमत कभी 400 रुपये पर पहुंच चुकी थी। शुरू होने के 15 वर्षों के अंदर ही यह भारत का चौथा सबसे बड़ा प्राइवेट सेक्टर बैंक बन गया। लेकिन आज यस बैंक अर्श से फर्श पर आ चुका है। शेयर की कीमत 50 रुपये भी नहीं रही है। डूबने की कगार पर पहुंच जाने और कई ग्राहकों का भरोसा खोने के बाद यह बैंक अपने आप को फिर से खड़ा करने की कोशिशों में लगातार जुटा हुआ है। आखिर ऐसा क्या हुआ था कि जो बैंक यस बैंक सफलता के अर्श पर था, वह अचानक से औंधे मुंह फर्श पर आ गिरा। आइए डालते हैं एक नजर इस बैंक की कामयाबी से लेकर बर्बादी और फिर खड़े होने के संघर्ष पर…
साल 1999 में पड़ी नींव
यस बैंक को नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कॉरपोरेशन के तौर पर साल 1999 में शुरू किया गया था। इसे शुरू करने वाले थे अशोक कपूर, राणा कपूर और हरकीरत सिंह। इसके बाद 2003 में यस बैंक को RBI से बैंकिग लाइसेंस मिला। दायचे बैंक के पूर्व कंट्री हेड हरकीरत सिंह ने 2003 में ही यस बैंक का साथ छोड़ दिया। उसके बाद अशोक कपूर चेयरमैन और राणा कपूर मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ बने। यस बैंक ने प्राइवेट सेक्टर बैंक के तौर पर शुरुआत साल 2004 में रैबो बैंक के साथ मिलकर की। 2005 में इसका IPO आया, जो 300 करोड़ का रहा।
2005 में राणा कपूर को एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर और 2009 में बैंक को 30000 करोड़ रुपये की बैलेंस शीट के साथ सबसे तेज ग्रोथ का अवॉर्ड मिला। 2015 में यस बैंक की लिस्टिंग NSE पर हुई और 2017 में QIP के जरिए 4906.68 करोड़ रुपये जुटाए गए।
फिर शुरू हुई प्रमोटर फैमिली की आपसी कलह
यस बैंक के शुरू होने के लगभग 4 साल बाद ही प्रमोटर फैमिली में कलह की चिंगारी सुलगने लगी थी और असर बैंक के कारोबार पर दिखने लगा था। 2008 में मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले में अशोक कपूर की मौत होने के बाद कलह ने बड़ा रूप ले लिया। अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर और यस बैंक के फाउंडर व सीईओ राणा कपूर के बीच बैंक के मालिकाना हक को लेकर लड़ाई शुरू हो गई। मधु चाहती थीं कि उनकी बेटी को बैंक के बोर्ड में जगह मिले। मामला मुंबई की अदालत तक पहुंचा और राणा कपूर की जीत हुई।
हर लोन को ‘Yes’ कहना पड़ा भारी
यस बैंक के कारोबार के गिरने की दूसरी अहम वजह रही धड़ाधड़ दिए गए लोन। इन लोन का पुनर्भुगतान नहीं होने से बैंक का NPA बढ़ता चला गया और कारोबार कमजोर होता चला गया। 2008 के बाद जैसे-जैसे बैंक की जर्नी आगे बढ़ी, यस बैंक में कॉर्पोरेट गवर्नेंस से समझौते के मामले सामने आने लगे। दूसरी ओर राणा कपूर के चलते बैंक पर बड़ा कर्ज भी हो गया क्योंकि उन्होंने कर्ज और उसकी वसूली के लिए तय प्रक्रिया से ज्यादा महत्व निजी संबंधों को दिया। हालत बिगड़ी तो प्रमोटर्स ने धीरे-धीरे बैंक में अपनी हिस्सेदारी बेचकर कर्ज चुकाना शुरू किया। अक्टूबर 2019 में नौबत यहां तक पहुंच गई कि राणा कपूर तक को अपने शेयर बेचने पड़े और यस बैंक में उनके ग्रुप की हिस्सेदारी घटकर 4.72 रह गई। बैंक की खस्ता हालत देख सीनियर पोस्ट्स पर मौजूद लोगों में से कई ने यस बैंक का साथ छोड़ा।
संकटग्रस्त कॉरपोरेट ग्राहकों ने डुबोई लुटिया
यस बैंक के ग्राहकों की लिस्ट में रिटेल से ज्यादा कॉरपोरेट ग्राहक रहे हैं। 2015 में यूबीएस ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया कि यस बैंक ने अपनी कुल नेटवर्थ का लगभग 125% हिस्सा संकटग्रस्त कंपनियों को उधार दिया है। इसके बाद आरबीआई ने यस बैंक की बुक्स का एसेट क्वालिटी रिव्यू शुरू किया और पता चला कि बैंक की लोन बुक्स में अनिल अंबानी की रिलायंस, एस्सेल ग्रुप, एस्सार पावर, वरदराज सीमेंट, रेडियस डेवलपर्स, IL&FS, दीवान हाउसिंग, जेट एयरवेज, कॉक्स एंड किंग्स, CG पावर, कैफे कॉफी डे, Altico जैसे नाम शामिल हैं। ये सभी कंपनियां संकटग्रस्त थीं।
जब कई कर्जदार कंपनियां दिवालिया होने लगीं और यस बैंक का दिया गया लोन वापस नहीं मिला तो तो बैंक की हालत भी खस्ता होती गई। 2017 में RBI ने पाया कि यस बैंक का एनपीए 8,000 करोड़ रुपये के करीब है, लेकिन बैंक ने घोषणा की कि उसके पास केवल 2000 करोड़ रुपये के एनपीए हैं।
जनवरी 2019 में राणा कपूर ने छोड़ा पद
सितंबर 2018 में RBI ने राणा कपूर के कार्यकाल विस्तार पर रोक लगा दी और उन्हें जनवरी 2019 तक सीईओ का पद छोड़ने को कहा। साथ ही बैंक को नया MD और CEO ढूंढने का भी निर्देश दिया गया। RBI का कहना था कि कपूर, बैंक की बैलेंस शीट की सही जानकारी नहीं दे रहे थे। RBI के आदेश के बाद राणा कपूर का कार्यकाल 31 जनवरी 2019 को खत्म हो गया और मार्च 2019 में नए सीईओ बने रवनीत गिल। गिल ने एक साल में यस बैंक को फिर से खड़ा करने की भरसक कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सके। राणा कपूर के हटने के बाद RBI ने बैंक पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। आरोप था कि बैंक लेनदेन के लिए इस्तेमाल होने वाले मेसेजिंग सॉफ्टवेयर स्विफ्ट के नियमों का पालन नहीं कर रहा।
मार्च 2020 में बैंक के बोर्ड को कर दिया भंग
RBI ने बैंक की लगातार गिरती हालत को देखकर इसे मोरेटोरियम में रखने का फैसला किया। बैंक मैनेजमेंट के तय वक्त के अंदर पुनरुद्धार योजना न ढूंढ पाने के चलते मार्च 2020 में RBI ने बैंक के बोर्ड को भंग कर दिया और SBI के पूर्व CFO प्रशांत कुमार को एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर 3 अप्रैल तक ग्राहकों के लिए जमा से निकासी की सीमा 50,000 रुपये कर दी। साथ ही SBI को यस बैंक में निवेश के लिए बेंकों का एक कंसोर्शियम बनाने को कहा।
इतना ही नहीं यह भी निर्देश दिया गया कि यस बैंक के मौजूदा शेयरधारक अगले 3 साल तक अपनी शेयरहोल्डिंग्स का 75 प्रतिशत नहीं बेच सकते। इसके बाद SBI ने LIC और अन्य बैंकों के साथ मिलकर यस बैंक में 11,000 करोड़ रुपये डाले। अक्टूबर 2022 में प्रशांत कुमार को बैंक का CEO और MD बनाया गया। रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अगस्त 2019 में यस बैंक की रेटिंग घटा दी। वित्त वर्ष 2020 में यस बैंक का शुद्ध घाटा 16,418.02 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। बैड लोन का अमाउंट 50,000 करोड़ पर था।
फिर लौटने लगे अच्छे दिन
प्रशांत कुमार को सीईओ और एमडी बनाए जाने के बाद यस बैंक ने अपना खोया हुआ भरोसा फिर से पाना शुरू किया। दिसंबर 2022 में बैंक ने 48000 करोड़ रुपये के बैड लोन्स को 11,500 करोड़ रुपये में बेच दिया। जुलाई, 2022 में वैश्विक निजी इक्विटी फर्मों कार्लाइल और एडवेंट से 8,900 करोड़ रुपये का फंड जुटाया।
वित्त वर्ष 2023 में यस बैंक का शुद्ध मुनाफा 32.7 प्रतिशत की कमी के साथ 717 करोड़ रुपये रहा। वहीं वित्त वर्ष 2024 में बैंक का शुद्ध मुनाफा 74 प्रतिशत के उछाल के साथ 1,251 करोड़ रुपये रहा। वित्त वर्ष 2024 लगातार तीसरा साल रहा, जब बैंक ने मुनाफा दर्ज किया।
शेयर की क्या रही कहानी
यस बैंक ने कई साल निवेशकों को लगातार बेहतर रिटर्न दिया। शेयर बाजार में जुलाई 2005 में लिस्ट होने के बाद शेयर का भाव 12.37 रुपये से 3100 प्रतिशत बढ़कर 20 अगस्त 2018 को 404 रुपये पर पहुंच गया था। यह शेयर का रिकॉर्ड हाई है। बैंक के 10 रुपये फेस वैल्यू वाले शेयर को साल 2017 में 2 रुपये फेस वैल्यू वाले शेयरों में तोड़ा गया था। इसलिए 404 रुपये का भाव स्टॉक स्प्लिट के बाद एडजस्टेड भाव है। 14 जून 2024 को यस बैंक के शेयर की कीमत बीएसई पर 23.82 रुपये पर क्लोज हुई। पिछले एक साल में शेयर की कीमत 47 प्रतिशत मजबूत हुई है।