BEL Share Price: एग्जिट पोल के विपरीत लोकसभा चुनाव के नतीजे आने पर 4 जून को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के शेयर 20 फीसदी तक टूट गए थे। हालांकि फिर इसमें रिकवरी शुरू हुई और आज की बात करें तो इंट्रा-डे में यह करीब 4 फीसदी उछल गया। घरेलू ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल का मानना है कि खास प्रकार के डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स सेगमेंट में इसकी कारोबारी मौजूदगी है और डिफेंस सेक्टर में निवेश के लिए यह शानदार शेयर है। आज इसके शेयर BSE पर 3.43 फीसदी की बढ़त के साथ 283.10 रुपये के भाव पर बंद हुए हैं। इंट्रा-डे में यह 3.91 फीसदी उछलकर 284.4 रुपये की ऊंचाई तक पहुंच गया था।
BEL को लेकर ब्रोकरेज क्यों है पॉजिटिव
मोतीलाल ओसवाल का कहना है कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स को वित्त वर्ष 2024 में लक्ष्य से कहीं अधिक ऑडर्स मिले थे तो अगर इस वित्त वर्ष 2025 में सुस्ती आती है तो भी कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत भले न मिला हो लेकिन ब्रोकरेज का मानना है कि अगली सरकार का फोकस निवेश आधारित ग्रोथ, कैपिटल एक्सपेंडिचर, इंफ्रा, मैनुफैक्चरिंग और डिफेंस पर बना रहेगा। पिछले तीन से चार साल में सरकार का जोर स्वदेशी, निजी सेक्टर की अधिक भागीदारी और डिफेंस एक्सपोर्ट्स बढ़ाने पर रहा है और ब्रोकरेज के मुताबिक आगे भी ऐसा ही रहने वाला है।
डिफेंस पर सरकार के बढ़ते खर्च, मार्केट शेयर में सुधार, तकनीकी साझेदारी के साथ-साथ टोटल रेवेन्यू में निर्यात और नॉन-डिफेंस की सुधरती हिस्सेदारी के चलते बीईएल को तगड़ा फायदा होगा। मोतीलाल ओसवाल के मुताबिक वित्त वर्ष 2024-26 के बीच इसका सेल्स सालाना 19 फीसदी की चक्रवृद्धि दर (CAGR), EBITDA भी 20 फीसदी और मुनाफा 22 फीसदी की CAGR से बढ़ सकता है। इसके अलावा कंपनी के पास वित्त वर्ष 2024 के आंकड़ों के मुताबिक 11 हजार करोड़ रुपये का कैश सरप्लस है जिसस कैपिसिटी बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। ऐसे में ब्रोकरेज फर्म ने मजबूत ऑर्डर बुक, स्थायी ग्रॉस मार्जिन और वर्किंग कैपिटल पर पर्याप्त नियंत्रण के चलते बीईएल की खरीदारी की रेटिंग को कायम रखा है और टारगेट प्राइस 310 रुपये पर फिक्स किया है।
निवेश को लेकर रिस्क क्या हैं?
ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल को बीईएल पर काफी भरोसा है। हालांकि इसमें निवेश को लेकर कुछ रिस्क भी हैं। जैसे कि डिफेंस और नॉन-डिफेंस सेगमेंट में ऑर्डर मिलने में सुस्ती, बढ़ती प्रतिस्पर्धा, बड़ी टेंडर्स को अंतिम रूप देने में देरी, कमोडिटी के भाव में उछाल और रक्षा मंत्रालय से पेमेंट में देरी होती है तो इससे कंपनी के रेवेन्यू, मार्जिन और कैश फ्लो को लेकर जो अनुमान है, उस पर झटका दिख सकता है।
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