सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को टेलीकॉम कंपनियों पर इनकम टैक्स के बकाया अमाउंट पर इंटरेस्ट माफ कर दिया। उसने यह भी कहा कि इन कंपनियों की तरफ से चुकाई जाने वाली लाइसेंस फीस को इनमक टैक्स एक्ट के लिहाज से कैपिटल एक्सपेंडिचर माना जाए। देश की सबसे बड़ी अदालत ने 16 अक्टूबर, 2023 को कहा था कि टेलीकॉम कंपनियां अपने मुनाफे का कुछ फीसदी हर साल जो लाइसेंस फीस के रूप में चुकाते हैं, उसे रेवेन्यू एक्सपेंडिचर नहीं माना जाएगा। रेवेन्यू एक्सपेंडिचर का मतलब उस खर्च से है जिसे कंपनियां अपने बिजनेस के लिए खर्च करती हैं।
सुप्रीम कोर्ट का पहले का फैसला
इनकम टैक्स एक्ट में कुल प्रॉफिट्स में से रेवेन्यू एक्सपेंडिचर को घटाने की इजाजत दी गई है। कैपिटल एक्सपेंडिचर का मतलब उस खर्च से है, जिसे कंपनियां अपने बिजनेस के विस्तार के लिए करती हैं। इसे कंपनी के इनकम में से नहीं घटाया जाता है। चूंकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है कि लाइसेंस फीस एक तरह से कैपिटल एक्सपेंडिचर है, जिससे टेलीकॉम कंपनियां अपनी सालाना टैक्सेबल इनकम से लाइसेंस फीस नहीं घटाई जा सकती।
टेलीकॉम कंपनियों ने याचिका दाखिल की थी
इस आदेश के बाद टेलीकॉम कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें इनकम टैक्स के बकाया अमाउंट पर इंटरेस्ट माफ कर देने की गुजारिश की गई थी। कंपनियों की दलील थी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उनकी टैक्सेबल इनकम पर काफी ज्यादा असर पड़ेगा, क्योंकि शुरुआती सालों में एसेसी (टेलीकॉम कंपनियों) की टैक्सेबल इनकम काफी बढ़ जाएगी।
टेलीकॉम कंपनियों ने दी थी यह दलील
टेलीकॉम कंपनियों की दलील थी कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनकी इनकम टैक्स देनदारी काफी बढ़ जाएगी, जिससे इस आईटी एक्ट के प्रोविजन के तहत इंटरेस्ट लगेगा। चूंकि कोर्ट के फैसले से 20 साल से चली आ रही व्यवस्था बदल गई थी, जिससे टेलीकॉम कंपनियों को उस पीरियड के लिए इंटरेस्ट चुकाना होता। याचिका में कहा गया, “एसेसी की तरफ से चुकाया जाने वाला इंटरेस्ट ज्यादातर एसेसमेंट ईयर में एसेसी की टैक्स की देनदारी से ज्यादा होगा। इससे एसेसी के लिए काफी वित्तीय मुश्किल पैदा हो जाएगी।”