आज कल के इस अर्थयुग में बहुत से लोग अच्छी कमाई करना चाहते हैं। अब तो खेती किसानी में पढ़े लिखे लोग अपनी किस्मत अजमा रहे हैं और खेती के जरिए अच्छी आमदनी कर रहे हैं। अगर आप भी खेती के जरिए अच्छा मुनाफा हासिल करना चाहते हैं तो आज हम आपको तरबूज की खेती (Watermelon farming) के बारे में बता रहे हैं। इस बिजनेस में तरबूज के फसल उगाने से सीधा डबल इनकम होती है। झारखंड के हजारी बाग में कुछ महिला किसानों ने तरबूज की खेती के जरिए मोटी कमाई कर रही हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक,हजारीबाग के चरही में रहने वाली महिला किसानों ने 200 एकड़ जमीन पर 700 महिलाओं ने तरबूज की खेती कर लाखों का मुनाफा कमा रही है। इन सभी महिलाओं के पास थोड़ी-थोड़ी जमीन थी। फिर सभी महिलाओं ने एक ग्रुप बनाया और खेती के लिए एक बड़ी जमीन तैयार कर खेती करनी लगीं। जिससे इनकी कमाई बढ़ गई।
तरबूज की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
तरबूज की खेती (tarbooj ki kheti) के लिए गर्म और औसत नमी वाला क्षेत्र बेहतर होता है। इसके पौधओं को 25-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान अच्छा रहता है। रेतीली दोमट मिट्टी में तरबूज के लिए अच्छी मानी जाती है। इसकी खेती नदियों के खाली स्थानों पर सबसे अच्छी होती है। मिट्टी का पीएचमान 6.5 से 7.0 से अधिक नहीं होना चाहिए। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में तरबूज की बुवाई फरवरी महीने में की जाती है। वहीं नदियों के किनारे खेती करने पर बुवाई मार्च तक करनी चाहिए। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल तक बुवाई की जाती है।
तरबूज के फलों की तुड़ाई
तरबूजे के फलों को बुआई से लगभग 2-3 महीने के बाद तोड़ सकते हैं। हर किस्म पर फलों का आकार और रंग निर्भर करता है। आप फलों को दबाकर भी देख सकते हैं कि अभी फल पका या कच्चा है। अगर फलों को दूर भेजना है, तो पहले ही फलों को तोड़ लेना चाहिए। फलों को डंठल से अलग करने के लिए तेज चाकू का उपयोग करें। इसके अलावा फलों को तोड़कर ठण्डे स्थान पर एकत्र करना चाहिए।
तरबूज से कमाई
एक हेक्टेयर के खेत में तरबूज की उन्नत किस्मों से औसतन पैदावार करीब 200 क्विंटल से 600 क्विंटल तक का उत्पादन हासिल किया जा सकता है। इसका बाजार भाव 8 से 10 रूपये प्रति किलो होता है। जिससे किसान एक बार की फसल से 2 से 3 लाख की कमाई आसानी से कर सकते हैं वहीं तरबूज खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में की जाती है। इन्य फलों के फसलों के मुकाबले इस फल में कम समय, कम खाद और कम पानी की आवश्यकता पड़ती है।