पिछले हफ्ते जब सेंसेक्स में गिरावट आई तो मैंने सोचा कि अगर मेरे पास एक्स्ट्रा कैश होता में खरीदारी करती। हालांकि, मुझे बताया गया कि अफसोस करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जल्द बड़ी गिरावट आने वाली है। लेकिन, अब ऐसा लगता है कि वह फॉल्स बॉटम था। उसके बाद मार्केट चढ़ा है। अब मैं जानना चाहती हूं कि क्या यह ‘फॉल्स सीलिंग’ है। अगर आप लोकसभा चुनावों के दौरान और इनफ्लेशन-इंटरेस्ट रेट को लेकर अनिश्चितता के बीच मार्केट के ऐसे मूवमेंट्स पर ध्यान दे रहे हैं तो या आपको कुछ बातें ध्यान में रखने की जरूरत है।
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मार्केट में उतारचढ़ाव लंबे समय तक जारी रह सकता है। ऐसे में आपने कब खरीदारी करने का प्लान बनाया है? क्या आपके दिमाग में मार्केट का कोई खास लेवल है?
मान लीजिए आपके पास काफी कैश है। आप खरीदारी के लिए मौके के इंतजार में हैं। मार्केट 5 फीसदी गिर जाता है। आप इंतजार करते हैं। यह और 10 फीसदी गिर जाता है। आप इंतजार करते हैं, क्योंकि आपको भरोसा होता है कि यह और गिरेगा। यह और 8 फीसदी गिर जाता है। अब आपके दिमाग में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं रह जाता कि बुरे दिन आ चुके हैं। जब आप मार्केट के निचले स्तर से उबरने की उम्मीद कर रहे होते हैं रैली शुरू हो जाती है। आप मौका चूक जाते हैं।
अगर आपने गिरावट पर खरीददारी कर भी ली है तो सवाल है कि आपने कितना निवेश किया है? क्या आप दोबारा गिरावट आने पर भी खरीदारी करेंगे? अगर आपने अपने पूरे पैसे निवेश कर दिए है और मार्केट फिर गिरता है तो इसका मतलब है कि आप बॉटम (निचले स्तर) को मिस कर देंगे। जब तक कि आप बहुत भाग्यशाली नहीं होंगे आप हर बार निवेश का मौके का इस्तेमाल कर अमीर बनने वाले नहीं हैं।
दूसरा बड़ा सवाल यह है कि इंतजार वाले समय में आप अपना पैसा कहां रखेंगे? यह पैसा ऐसी जगह रखा होना चाहिए, जहां से जरूरत पड़ने पर तुरंत निकालना मुमकिन हो।
2. मार्केट के लेवल से आपको फैसले नहीं लेने चाहिए।
एक इनवेस्टर को खरीदने और बेचने का फैसला हर स्टॉक के हिसाब से लेना चाहिए। आप ‘मार्केट लेवल’ का इस्तेमाल नहीं कर सकते। याद कीजिए जब अमेरिकी बाजार चढ़ रहे थे? अगर आपने टेक्नोलॉजी की दिग्गज छह कंपनियों-मेटा, एपल, अल्फाबेच, एमेजॉन, नेटफ्लिक्स और माइक्रोसॉफ्ट में निवेश किया होता तो आपको रिटर्न बहुत ज्यादा नहीं मिलता। S&500 के कई स्टॉक्स के कमजोर प्रदर्शन को कुछ मुट्ठी भर शेयरों ने छुपा दिया था।
अपने पोर्टफोलियो के प्रदर्शन की तुलना एक इंडेक्स से करना आसान है। लेकिन, ऐसा करना बुद्धिमानी नहीं है। सेंसेक्स 30 बड़ी कंपनियों की वैल्यू की माप है। इनमें से हर कंपनी का आपके पोर्टफोलियो में क्या रोल है?
3. बिजनेस परफॉर्मेंस पर फोकस करें न कि मार्केट लेवल्स पर
स्टॉक की कीमतें अलग-अलग कारणों से चढ़ती और गिरती हैं। इन वजहों का आपके फैसले पर असर नहीं पड़ना चाहिए। अगर आपका कोई इनवेस्टमेंट थेसिस नहीं है तो आपको शेयरों में निवेश नहीं करना चाहिए। क्या कोई बिजनेस बढ़ रहा है और कुछ साल पहले के मुकाबले प्रति शेयर ज्यााद पैसे बना रहा है? आज से 10 साल बाद इस बिजनेंस की संभावित वैल्यू क्या होगी?
कुछ साल पहले प्रोफेसर और इनवेस्टर संजय बख्शी ने ऐसी तीन बातें बताई थी, जो हर एनालिसिस से संबंध रखती है:
ए-क्या बिजनेस बैलेंसशीट पर दबाव बनाए बगैर अच्छी ग्रोथ हासिल कर सकता है?
बी-क्या बिजनेस नए शेयर जारी किए बगैर ग्रोथ हासिल कर सकता है?
सी-क्या कैपिटल पर इंक्रीमेंटल रिटर्न के लिहाज से स्टॉक की ग्रोथ बहुत अच्छी है?
कई लोगों का कहना है कि एचडीएफसी बैंक का बेस्ट टाइम बीत चुका है। अब समय दूसरे प्राइवेट बैंकों की तरफ देखने का है। एसबीआई के स्टॉक्स में शानदार तेजी दिखी है। क्या आपने इसे खरीदा है? अगर हां तो कई ठोस रिसर्च हैं जो इस तेजी पर सवाल खड़े करते हैं?
सबक क्या है:
-गिरावट पर खरीदारी के लिए मार्केट को टाइम करने की कोशिश नहीं करें।
-मार्केट लेवल के आधार पर फैसले नहीं ले, आप इंडिविजुअल स्टॉक पर फोकस करें।
लैरिसा फर्नांड
(लेखिका पर्सनल फाइनेंस और इनवेस्टमेंट पर लिखती हैं)