हाल के हफ्तों में भारतीय शेयर बाजार में गिरावट देखी गई है, जिसने इंवेस्टर को चिंता में डाल दिया है। निफ्टी 50 में 1.87% और सेंसेक्स में 1.64% की गिरावट के बाद, कई म्यूचुअल फंड इंवेस्टर्स सोच रहे हैं कि क्या उन्हें अपनी इंवेस्टमेंट स्ट्रेटेजी का री-वैल्यूएशन करना चाहिए। बाजार में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं, लेकिन यह आपकी इंवेस्टमेंट प्लान और रिस्क पर फिर से विचार करने का अवसर भी हो सकता है।
रिस्क टॉलरेंस
अगर आप जल्द ही रिटायर होने वाले हैं या आपका रिस्क टॉलरेंस कम है, तो इक्विटी पर डिपेंडेंट इंवेस्टमेंट्स को कम करने पर विचार करें। वहीं, अगर आपका रिस्क टॉलरेंस ज्यादा है और निवेश का समय लंबा है, तो आप बाजार की गिरावट को बेहतर सह सकते हैं।
पोर्टफोलियो री-बैलेंसिंग
बाजार में गिरावट से पोर्टफोलियो को री-बैलेंस करने का मौका मिल सकता है। रिबैलेंसिंग का मतलब है कि आप अपने डिजायर रिस्क लेवल को बनाए रखने के लिए अपने एसेट एलोकेशन को एडजस्ट करें। उदाहरण के लिए, यदि आपके इक्विटी होल्डिंग का मूल्य कम हो गया है, तो आपको अपने डिजायर एसेट एलोकेशन को बनाए रखने के लिए अन्य एसेट क्लास से फंड को फिर से एलोकेशन करने की जरूरत हो सकती है।
लिक्विडिटी बनाए रखें
बाजार में गिरावट के दौरान, अपने म्यूचुअल फंड के परफॉर्मेंस का रिव्यू करना जरूरी है। शॉर्ट-टर्म उतार-चढ़ाव की उम्मीद तो की जाती है, लेकिन लगातार खराब परफॉर्मेंस फंड के साथ अंतर्निहित समस्याओं का संकेत हो सकता है। ऐसे फंड को चुनें जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से अपने बेंचमार्क से बेहतर प्रदर्शन किया हो और बाजार में गिरावट के दौरान लचीलापन दिखाया हो।
एक्सपर्ट की राय
प्रभादास लिलाधर के इंवेस्टमेंट सर्विसेज के चीफ पंकज श्रेष्ठ का कहना है कि कि चुनाव और बाजार के उतार-चढ़ाव को देखते हुए, इंवेस्टर्स को सलाह दी जाती है कि वे चुनाव के बाद सुधारों को भुनाने के लिए कुछ लिक्विडिटी बनाए रखें। मौजूदा ट्रेंड को देखते हुए, बड़े शेयरों वाले प्लान में निवेश बढ़ाने की सलाह दी जाती है। बड़े शेयर न केवल अट्रैक्टिव वैल्यूएशन के अवसर प्रदान करते हैं, बल्कि बाजार की अशांति के दौरान उनकी लचीलापन और बेहतर परफॉर्मेंस का भी ऐतिहासिक ट्रेंड रहा है।