Share Bazar News: भारतीय शेयर बाजार इस समय दबाव में देखा जा सकता है। स्टॉक मार्केट में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। सोमवार को बीएसई 700 से अधिक अंक लुढ़क गया। शेयर बाजार में गिरावट के पीछे की वजह विदेशी निवेशकों को माना जा रहा है। संस्थागत विदेशी निवेशक मई में अबतक इंडिया स्टॉक मार्केट से 25,000 करोड़ रुपये निकाल चुके हैं। हालांकि, FII की तरफ से की जा रही इस निकासी का घरेलू संस्थागत निवेशक जोरदार खरीदारी से जवाब दे रहे हैं।
एक्सपर्ट्स भी अब इस बात को स्वीकार्य कर रहे हैं कि अब स्टॉक मार्केट में घरेलू संस्थागत निवेशकों की भूमिका बढ़ी है। बीएसई 500 में उनकी हिस्सेदारी अपने आल-टाइम हाई पर है। बता दें, साल 2009 से 2014 के दौरान शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों की तरफ से 110 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया था। जबकि तब घरेलू संस्थागत निवेशकों की तरफ से 12 बिलियन डॉलर ही शेयर बाजारों में डाले गए थे।
घरेलू निवेशकों का बोलबाला
एलारा कैपिटल की रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2023 के दौरान घरेलू संस्थागत निवेशकों ने 114 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। जबकि इस दौरान विदेशी संस्थागत निवेशकों ने स्टॉक मार्केट में 47 बिलियन डॉलर डाला है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले साला में 70 बिलियन डॉलर का घरेलू निवेश आया है। जिसमें अधिकतर इन्वेस्टमेंट एसआईपीओ के जरिए आया है।
अप्रैल के महीने में 8700 करोड़ रुपये की निकासी
इससे पहले अप्रैल महीने में एफपीआई ने शेयरों से 8,700 करोड़ रुपये की शुद्ध निकासी की थी। इस तरह चालू माह के पहले 10 दिन में ही एफपीआई अप्रैल से अधिक की निकासी कर चुके हैं। इससे पहले एफपीआई ने मार्च में शेयरों में 35,098 करोड़ रुपये और फरवरी में 1,539 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था। माना जा रहा है कि आम चुनाव के बाद भारतीय कंपनियों के मजबूत वित्तीय नतीजों की वजह से एफपीआई भारतीय बाजार में निवेश बढ़ाएंगे।
ट्रेडजिनी के सीओओ (COO) त्रिवेश डी ने कहा कि चुनाव परिणाम स्पष्ट होने तक एफपीआई सतर्क रुख अपना सकते हैं, लेकिन नतीजे अनुकूल रहने और राजनीतिक स्थिरता की स्थिति में वे भारतीय बाजारों में बड़ा निवेश कर सकते हैं।
क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स?
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा, “एफपीआई की आक्रामक बिकवाली के कई कारण हैं। आम चुनाव के नतीजों को लेकर अनिश्चितता की वजह से एफपीआई सतर्कता बरत रहे हैं। चुनाव नतीजों से पहले वे बाजार में आने से कतरा रहे हैं।